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Akhand Jyoti
Year 1973
Version 2
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April 1973
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दूसरों की निन्दा करके किसी को कुछ नहीं मिल, जिसने अपने को सुधारा उसने बहुत कुछ पाया
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Page Titles
प्रगति के पाँच आधार
विवेकपूर्ण प्रतिशोध
नास्तिकवाद का अन्त अब निकट आ गया
सत्य शब्दों में आबद्ध नहीं, भावना में सन्निहित है।
हम माया के बन्धनों में कब तक जकड़े रहेंगे
मृग मरीचिका में भटकती हमारी भ्रान्त मनःस्थिति
नैतिकता से ही विश्व शान्ति सम्भव
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हराम की कमाई से पछतावा ही हाथ लगता है।
दूसरों का सहारा न तकें, आत्मनिर्भर बनें
बीमारियाँ शरीर की नहीं मन की
श्रमिक की महानता (kahani)
परिष्कृत दृष्टिकोण का नाम ही स्वर्ग है।
नैतिकता ही जीवन की आधार-शिला
विश्व के घटक को प्रकृति ने प्रचुर सामर्थ्य दी है
सर्पों से भी हम बहुत कुछ सीख सकते हैं।
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विधाता ने मनुष्य को किसलिए बनाया (kahani)
प्रवासी भारतीयों के साथ घनिष्ठता सुदृढ़ की जाय
दीपक का स्नेह समाप्त हो गया (kahani)
कायकलेवर में विद्यमान्-ऋषि तपस्वी और ब्राह्मण
गुरु के भाव (kahani)
प्रतिकूलता देखकर सन्तुलन न खोए
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शक्तियों का आवश्यक अपव्यय न किया जाय
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हिप्पीवाद एक विद्रोह विस्फोट
उत्कृष्टता की जननी– उदारता
हमारी अन्तः ऊर्जा ज्योतिर्मय कैसे बने
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दुःखों की आग में न जलने का मार्ग
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यौन स्वेच्छाचार का समर्थक फ्रायडी मनोविज्ञान
दोमुँहा(kahani)
अपनों से अपनी बात
बगदाद के सन्त जुनैद (kahani)
असतो माँ सदगमय (kahani)
ॐ भू र्भुवः स्वः
तत्
स
वि
तु (र्)
व
रे
णि
यं
भ
र्गो
दे
व
स्य
धी
म
हि
धि
यो
यो
नः
प्र
चो
द
या
त्
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