पशु समान कार्य से जिस यौन-शक्ति का नाश होता है, उसी को ऊर्ध्वगति कर देने अर्थात् मानव शरीर की महाविद्युत धारा में अथवा मस्तिष्क में परिचालित कर देने से वह वहाँ पर सञ्चित होकर ओज, अथवा आध्यात्मिक शक्ति में परिणत हो जाती है समस्त सत् चिन्तन, समस्त प्रार्थनाएँ इस पाशविक शक्ति का ओज में रूपान्तरण करने में सहायता करती है। और उसी से हम आध्यात्मिक शक्ति भी प्राप्त करते हैं। यह ओज ही है मनुष्य का मनुष्यत्व। और केवल मानव शरीर में ही इस शक्ति का संग्रह सम्भव है। समस्त यौन शक्तियों को ओज में परिणत करने वाला व्यक्ति देवता है। उसके वचनों में अमोघ शक्ति होती है-उसके वचनों से नूतन जगत की सृष्टि हो सकती है। —स्वामी विवेकानन्द