नैतिकता से ही विश्व शान्ति सम्भव

April 1973

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

समाज में शान्ति कैसे स्थापित हो यह प्रश्न इन दिनों जितना तेजी से उठाया जा रहा है उतना ही वह क्लिष्ट और गहन है। शान्ति के सारे उपक्रम असफल हो रहे हैं क्योंकि आज बच्चों के मस्तिष्क में व्यवस्थित क्रियायें और विचारशीलता उत्पन्न नहीं की जा रही। यह क्रिया दृढ़ नैतिक ढाँचे (रिजिड मोरल स्ट्रक्चर) द्वारा उत्पन्न की जाती है। सद्विचारों की अनुपस्थिति में अवस्थित क्रियायें काम तो करती है। पर धीरे-धीरे करती हैं। शान्ति स्थापना के लिए किसी क्रिया की आवश्यकता नहीं। यदि मनुष्य अपने नैतिक कर्तव्यों का पालन आप करने लगे तो शान्ति और व्यवस्था अपने आप जम जाये। शर्त यह है कि उस दुबारा कहीं से भी छेड़छाड़ न किया जाये।

विश्व का संतुलन इस बात पर टिका हुआ है कि लोग न्याय, वाणिज्य, उद्योग, विज्ञान की एकता में विश्वास करें और दी जाने वाली शिक्षा में मुख्य रूप से नैतिकता का समावेश करें। व्यक्तिगत नैतिकता इतनी सामर्थ्यवान है कि स्वास्थ्य, बुद्धि और शिक्षा आदि कमियाँ होने पर भी उसके विकास को संसार की कोई भी शक्ति रोक नहीं सकती। स्वास्थ्य की दृष्टि से गाँधी जी बहुत कमजोर व्यक्ति थे। उनकी बुद्धि भी उतनी प्रखर नहीं थी शिक्षा भी उनकी कोई बहुत अधिक न थी। पर उनके सदाचरण, उनकी नैतिकता ने जब सोये हुये अन्तःकरण को जागृत किया तो उन्होंने अकेले ही सारे भारतवर्ष, एशिया और योरोप में अपने नाम का डंका बजा दिया। भारतवर्ष को काँग्रेस ने स्वतंत्रता नहीं दिलाई गाँधी जी भी शारीरिक माध्यम मात्र थे जिस शक्ति ने सामंतवाद, दमनवाद को भी परास्त कर दिया वह मानव मन में पैदा होने वाली नैतिकता थी। वह गाँधी जी में साकार होकर आई थी।

अब्राहम लिंकन, मार्टिन लूथर किंग, ईसा मसीह, सुकरात, शंकराचार्य इन सबकी सफलताओं के मूल में उनकी नैतिकता प्रमुख थी। इसी से उनकी आध्यात्मिकता प्रभावित हुई और लोगों की दृष्टि में वे मृत्यु पर्यन्त आदर्श और खरे बने रहे। हजरत इब्राहिम एक धनाढ्य व्यक्ति के बाग की रखवाली करते थे। उन्होंने तीस वर्ष तक उस बाग से कच्चा आम तक तोड़कर नहीं खाया। उस पर उन्हें गर्व रहा और आत्मसंतोष भी। उनकी इस नैतिकता ने लोगों के मुख से उन्हें सन्त सम्बोधन करने को विवश कराया।

धर्म का उद्देश्य मानव को आन्तरिक रूप से विकसित करना है जिससे वह नैतिकतापूर्वक विचार कर सके। शरीर और मन से अधिक शक्तिशाली का अस्तित्व अधिक समय तक नहीं रहा। नीतिवान पुरुष ही हैं जो मर जाने के बाद भी मनुष्य जाति को प्रेरणा और प्रकाश देते रहते थे। उन्हीं लोगों की जीवन गाथायें, आदरपूर्वक पढ़ी और आचरण में ढाली जाती हैं। नैतिक व्यक्ति ही समाज को गलत परम्पराओं, प्रथाओं और पंथों से बचा कर उन्हें कल्याणकारी मार्गदर्शन देने में समर्थ हुए है, अन्य कोई सामान्य या असामान्य लोग ऐसा नहीं कर सके।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles