ईश्वर के दर्शन

February 1972

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ईश्वर के दर्शन -

‘ईश्वर की प्राप्ति कहाँ हो सकती है?’ युवक ने दीनबन्धु एण्ड्रूज से प्रश्न किया।

उन्होंने हँसते हुए उत्तर दिया ‘केवल स्थान बताने से ही क्या लाभ? आज शाम को मेरे साथ चलना, मैं तुम्हें साक्षात ईश्वर के दर्शन ही करा लाऊँगा। स्थान भी देख लोगे और आवश्यकतानुसार जा भी सकोगे।

वह युवक शाम की उत्सुकता पूर्वक प्रतीक्षा करने लगा। शाम हुई और वह युवक दीनबन्धु के साथ भगवान के घर चल पड़ा। दीनबन्धु ने हरिजन बस्ती में एक वृद्ध हरिजन के घर ले जाकर उसे खड़ा कर दिया। टूटी-फूटी झोंपड़ी, जिसमें ऊपर की ओर मन्द-मन्द प्रकाश आ रहा था। तेल की ढिबरी के प्रकाश में उसके चेहरे की झुर्रियों को आसानी से पढ़ा जा सकता था।

टूटी खाट पर एक बोरा बिछाये दस वर्षीय मातृहीन बालक लेटा हुआ था। डाक्टरों ने उसे टी0बी0 रोग बताया था। वृद्ध उसी की सेवा में लगा रहता था। दीनबन्धु ने अपनी उंगली के इशारे से कहा ‘देख लो यही हैं भगवान।’

युवक को दीनबन्धु की बात पर बड़ा आश्चर्य हुआ। उस रोगी बालक की शोचनीय स्थिति और वृद्ध को उसकी सेवा-सुश्रूषा में तल्लीनता देखकर उसमें उसने साक्षात ईश्वर दर्शन का अनुभव किया, उस दिन से युवक के जीवन की दिशा ही बदल गई। वह व्यापार में लगकर धनोपार्जन करने का उद्देश्य बनाये हुये था। पर अब उसने सुख और आराम की जिन्दगी बिताने का लक्ष्य छोड़कर अपना जीवन दुःखी मानवता की सेवा के लिए समर्पित कर दिया। अब उसका पक्का विश्वास है कि पीड़ित मानवता की सेवा ही सच्ची ईश्वर आराधना है।


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