शान्ति की कल्पना में तत्पर रहना, जबकि संघर्ष आवश्यक हो; निश्चित रूप से शान्ति मिटाना है। शान्ति के लिए भी संघर्ष आवश्यक है।
का बढ़ना भी स्वाभाविक है अब उसका परिणाम कोलाहलों की अधिकाधिक वृद्धि के रूप में ही सामने आयेगा और आज के बड़े नगर कल सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए संकट बन कर उभरेंगे।
परिस्थिति को ध्यान में रखते हुए शहरों से पीछे हटकर देहातों में बसने की बात सोचनी चाहिए। अधिक कमाई-अधिक चमकीले चकाचौंध के आकर्षण में अपना शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य गँवा बैठना न बुद्धिमानी है न दूरदर्शिता।
प्राचीन काल में इस संकट को भली-भाँति समझा गया था इसलिए उस जमाने में शिक्षण संस्थाएं, शोध संस्थान, चिकित्सा केन्द्र, साधना स्थल, सुदूर देहातों में एकान्त एवं अन्य प्रदेशों में बनाये गये थे। जिसमें कोलाहल रहित वातावरण में शान्त संतुलित, स्वस्थ, सुखी और सुन्दर जीवन जिया जा सके, हमारे लिए भी उसी राह को अपनाना श्रेयस्कर होगा।