जीवन और मृत्यु, शुभ और अशुभ ज्ञान और अज्ञान का मिश्रण ही माया अथवा जगत् प्रपञ्च कहलाता है। तुम इस जाल के भीतर अनन्तकाल तक सुख ढूँढ़ते रहो तुम्हें उसमें सुख के साथ बहुत दुःख तथा अशुभ भी मिलेगा। यह कहना कि मैं केवल शुभ ही लूँगा अशुभ नहीं, निरा लड़कपन है यह असम्भव है।
-स्वामी विवेकानन्द
इसका एक ही कारण है उनका शीत प्रदेश में निवास, मनःसंस्थान में शान्ति सन्तुलन, अनावश्यक श्रम सन्ताप से बचतः वे अपना रहन-सहन इसी ढाँचे में ढालते हैं और प्राणायाम विद्या द्वारा श्वास प्रणाली पर नियन्त्रण स्थापित करके उसकी गति उतनी बना लेते हैं जिससे जीवित रहने भर का काम तो चल जाय पर अनावश्यक शक्तिक्षय की तनिक भी गुंजाइश न रहे।
निरोग, सशक्त और दीर्घजीवी शारीरिक स्थिति बनाये रखने के लिए आहार-विहार के सन्तुलन का ध्यान रखने के अतिरिक्त इस तथ्य को भी स्मरण रखना चाहिए कि आन्तरिक शान्ति और समस्वरता का आरोग्य के साथ अविच्छिन्न संबंध है। मानसिक स्वास्थ्य को बनाये रखने पर ही शारीरिक स्वास्थ्य को सुरक्षित रखा जा सकता है।