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सामाजिक व्याधि को हम बाहरी प्रयत्नों से दूर नहीं कर सकते। सुधार तो मन के ऊपर प्रभाव डालने से ही हो सकता है। शिक्षा द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से उसके लिए प्रयत्न करना होगा। आन्दोलन द्वारा सनसनी फैलाकर कर किसी सामाजिक बुराई को दूर करने की कोशिश से कोई लाभ नहीं हो सकता।
-स्वामी विवेकानन्द
की जानकारी दी थी और वहाँ कुआँ खोदने पर सचमुच यथा स्थान पानी निकला।
मनुष्य अनन्त शक्तियों का भण्डार है। यदा-कदा उसकी यह अविज्ञात क्षमताएं उभर आती हैं तो उसे अद्भुत और आश्चर्यजनक माना जाने लगता है। वस्तुतः ब्रह्माण्ड का एक छोटा नमूना पिण्ड अपने भीतर विश्व के समस्त सामर्थ्य बीज रूप से छिपाये बैठा है। साधना द्वारा उन प्रसुप्त शक्ति स्रोतों का प्रकटीकरण किया जा सकता है। यदाकदा उन अतीन्द्रिय शक्तियों का आभास मिलता रहता है वे उदाहरण यही सिद्ध करते हैं कि मानवीय अविज्ञान सामर्थ्य की विशालता और महानता के अस्तित्व पर अविश्वास न किया जाय वरन् उन्हें ढूँढ़ने, जगाने और उपयोग में लाने के प्रयास में लगा जाय।