Quotation

February 1972

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

पक्षियों की तरह हवा में उड़ना और मछलियों की तरह पानी में तैरना सीखने के बाद अब हमें इन्सानों की तरह धरती पर चलना सीखना है।

-राधाकृष्णन

का नकली अभ्यास करती हैं। ऐसा न किया जाये तो असली युद्ध लड़ना मुश्किल पड़ जाये। इस तरह का सूक्ष्म ज्ञान तक प्रकृति ने अपने नन्हें-नन्हें मनुष्येत्तर जीवों को प्रदान किया है।

घरों में पाई जाने वाली गौरैया जितनी सीधी और सरल होती है उतनी ही लड़ाकू पर शत्रु से लड़ने के लिए जवाँमर्दी, वह नकली युद्धाभ्यास करके पैदा करती है। उसकी यह नकली लड़ाइयाँ देखते ही बनती है ऐसे दायें-बायें से आक्रमण और बचाव करती हैं मानो, वियतनाम और वियतकाँग का गोरिल्ला युद्ध चल रहा हो।

नर भुनगा आक्रमण करने में कोई ज्यादा चतुर नहीं होता वह दुश्मन को हरा भी नहीं सकता फिर बेचारा अपनी जीवन रक्षा कैसे करता? उसे प्रकृति ने धमकाने और डराकर शत्रु को भगाने की विद्या सिखाई कोई शत्रु आता है तो वह अपने जबड़े ऐसे फैलाता है मानो कच्चा ही निगल जायेगा। आक्रमणकारी डरकर भाग जाता है तो भुनगा मौज से दूसरी तरफ चल देता है इसे प्रकृति का प्रशिक्षण न कहा जाये तो और क्या कहा जाये?

कार्बोनिक एसिड एक जहरीला रसायन है इसे खाकर कोई जिन्दा नहीं रह सकता। उसकी मात्रा अपने स्वाभाविक विकास दर से बढ़ती रहती तो सारा संसार विषमय हो जाता। फिर बात क्या है जो अभी तक पृथ्वी अमृतत्व से ओत-प्रोत है। प्रोफेसर पी0जी0गे नामक अंग्रेज वैज्ञानिक ने इसकी शोध की तो पाया कि मिट्टी में कुछ ऐसे कीटाणु होते हैं जो इस जगह को भी बड़े चाव से खा पी लेते हैं और इस तरह वे धरती माता को विषाक्त होने से बचा लेते हैं। ऐसे कीटाणु एक दो नहीं 200 के लगभग तो अब तक खोजे भी जा चुके हैं।

एक यह नन्हें कीटाणु हैं जो सामान्य होते हुए भी असामान्य कार्य करते हैं-भगवान् शिव के समान। एक है इन्सान जो संसार का विष-मानवता पर छाये विषैले वातावरण को मिटाने के लिए एक इंच भी आगे नहीं बढ़ता भगवान् द्वारा प्रदत्त अपनी असामान्यता को कलंकित करता है। प्रकृति प्रदत्त विशेषताओं का मनुष्य ने यदि सदुपयोग किया होता तो निस्सन्देह यह धरती तथाकथित स्वर्ग से कम नहीं वरन् अधिक ही साधन-सुविधाओं और सुख-शान्ति की प्रचुरताओं से भरी-पूरी दीखती।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118