मगधराज बिम्बिसार के लिये आज का दिन बड़े हर्ष और गौरव का दिन है। भगवान बुद्ध लोक यश को निस्सार बताते हैं। वे चाहते है ऊँच-नीच छोटे-बड़े का भेद संसार में न रहें, जीव मात्र परस्पर समता, ममता और शुचिता का जीवन यापन करते हुए सुखपूर्वक रहें, वे छोटे बन कर रहना पसन्द करते हैं इसीलिए राजकीय अतिथि भवन में ठहरने की अपेक्षा उन्होंने बेलवन को अपना विश्राम-स्थल चुना है तथापि अतिथि वे सम्राट बिम्बिसार के ही हैं।
एक सामान्य परिचारिका से लेकर मगध नरेश तक की, आज की सज-धज राज्याभिषेक पर्व को फीका कर रही थी। समस्त स्वागत साज तैयार है किन्तु मगध साम्राज्ञी क्षेमा अब तक अन्यमनस्क है। अन्तःपुर के स्वाध्याय कक्ष में वे आचार्य धर्मपाल का जीवन-दर्शन पढ़ रही हैं। सागल नरेश भगवान् बुद्ध के परम निष्ठावान शिष्य थे उन्हीं की राज-कन्या क्षेमा के अन्तःकरण में तथागत के प्रति उपेक्षा का यह भाव खटकने वाला तो था ही। स्वयं नरेश उपस्थित हुए और पूछा-प्रियतमे समस्त राज-प्रासाद तथागत की अगवानी के लिये तैयार हैं किन्तु आपने अभी तक अपने परिधान भी बदले नहीं। राज-कुल अतिथि की यह अवमानना अच्छी नहीं- उठो और स्वागत हेतु शीघ्र तैयार हो जाओ।
करवट के साथ पुस्तक का प्रस्तुत पृष्ठ बदलते हुए साम्राज्ञी बोली - महाराज! जिस व्यक्ति के लिए संसार निस्सार हो, सौंदर्य निस्सार हो उस व्यक्ति के सम्मुख जाकर संसारी जीव क्या करे? वहाँ जाऊँगी तो उनका प्रवचन यही तो होगा-यह संसार भ्रम है, साँसारिक सुख मिथ्या है और मिथ्या है सौंदर्य जिनके आधार पर ही हम अपने जीवन को सजाते सँवारते और सुख की कल्पना करते हैं?
‘आखिर गृही हो या विरक्त’-बिम्बसार बोले-जाना तो एक न एक दिन सब को ही पड़ेगा इसलिए पारलौकिक लक्ष्य की तैयारी जाने से पूर्व किया जाना ठीक है। यदि इस तरह का ज्ञान और मार्गदर्शन किसी योग्य पथ-प्रदर्शक से मिलता है तो इसमें बुरा क्या? इसे तो अपना सौभाग्य मानना चाहिए प्रिये! साम्राज्ञी ने कोई उत्साह प्रदर्शित नहीं किया। इसी बीच तथागत वहाँ आ पहुँचे। समस्त राज-परिवार उनके स्वागत में दौड़ पड़ा। स्वयं महाराज भी उपस्थित हुए किन्तु क्षेमा नहीं आई। भगवान् बुद्ध ने क्षेमा जब कन्या ही थी तभी सागल में उसे देखा था इन्होंने क्षेमा की कुशल क्षेम पूछी और साथ ही समय भी गये कि उसका सौंदर्य अहंकार ही उसे यहाँ आने में बाधक बना है।
इधर वे अन्य सब लोगों से बातचीत कर रहे थे उधर उनके योग प्रभाव से क्षेमा को योग निद्रा आ गई। उसने देखा एक अत्यन्त सौंदर्यवती अप्सरा भगवान बुद्ध को चँवर डुला रही है। कुछ ही निमिष के स्वप्न में उन्होंने अप्सरा की बाल्यावस्था, यौवन और जरा तीनों अवस्थाएं देखीं। उसका शिथिल जर्जर गात, पके बाल, धँसी आँखें देखते ही क्षेमा का अंतर्मन व्याकुल हो उठा-कहाँ गया उसका यौवन, कहाँ गया वह सौंदर्य जो अंग-अंग से काम-भाव टपका रहा था। नींद टूट गई और उसके साथ ही उनकी मोह निद्रा भी। मनुष्य जीवन कितना निस्सार है मनुष्य अपने आपको कितना सजाता सँवारता है पर अन्त में विनाश के अतिरिक्त हाथ कुछ नहीं आता-आज सारी भौतिकता बालू के ढेर की भाँति ढह गई। क्षेमा दूसरे क्षण तथागत के चरणों में पड़ी क्षमा माँग रही थी और पूछ रही थी ‘आत्मोद्धार का मार्ग’?
तथागत मुस्कराये और बोले-बेटी क्षेम! आत्मोद्धार और आत्म-कल्याण का मार्ग मिलेगा अवश्य - तुम अपने बाह्य सौंदर्य को भूलकर भीतरी सौंदर्य की तलाश करो तुम्हारी जिज्ञासा जितनी प्रबल होती जायेगी लक्ष्य उतनी ही तेजी से अपने आप पास आता चला जायेगा।