गुरुदेव के संपर्क में आने पर प्राप्त हुए प्रकाश के संबंध में परिजन अपनी अनुभूतियाँ आगे भी भेज सकते हैं उन्हें पुस्तकाकार छापने की बात सोची गई है।
जाते हैं। पर इनमें से अधिकाँश ऐसे होते हैं जो उत्पन्न हुई श्रद्धा को लोक मंगल के लिये प्रयुक्त करने को तैयार हो जाते हैं। मेरा आधा काम लोगों की व्यक्तिगत सहायता करना और आधा काम उत्पन्न हुई श्रद्धा को लोक मंगल में लगा देना है। दोनों काम पूरे होने पर मैं इस सेवा या संपर्क को पूरा मानता हूँ। इसी पद्धति से उन्हें 50 लाख व्यक्तियों को संपर्क में लाने उन्हें श्रद्धालु बनाने और अन्ततः नव-निर्माण का सक्रिय कार्यकर्ता बनाने में सफलता मिली है।
गुरुदेव की इस विचित्र शैली का महत्व समझा और मान गया कि उनकी तप साधना व्यक्तिगत सहायता ही लोक मंगल के लिये है।
-गुरुशरण दत्त वाधे-बर्द्धवान