साहसी ही श्रेय, सम्मान के अधिकारी

February 1972

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वत्स! मैंने केवल तुम्हें ही नहीं पाला, भीम को भी मैंने ही स्तनपान कराया है मुझे ज्ञात है कि वह कायर नहीं-निर्वीर्य भी नहीं है मेरा भीम। अपने सम्मुख अन्याय और अत्याचार होता रहे और उसका प्रतिरोध न हो यह आर्य-परम्परा के प्रतिकूल है तात! सो तुम भीम को रोको मत बक राक्षस को मारने के लिए और राष्ट्र को असुरत्व से बचाने के लिये उसे जाना ही चाहिये’-माँ कुन्ती ने दृढ़ स्वर में भीम की बात का समर्थन किया।

युधिष्ठिर बोले! अम्बे! हम आपका प्रतिवाद नहीं करते! भीम की शक्ति साहस का पता है, मुझे यह भी मालूम है कि अन्याय से संघर्ष करने की इच्छा वीर्यवान पुरुष ही किया करते हैं नपुंसक नहीं। भीम में वह सारी क्षमताएं है यह भी भली प्रकार जानता हूँ किन्तु आप ही सोचिये अम्बे! कल जब सारी दुनिया को बकासुर वध का समाचार मिलेगा तो क्या लोग यह नहीं जान जाएंगे कि यह कृत्य सिवाय भीम के और किसी का नहीं हो सकता। हम लोग एक वर्ष का अज्ञातवास कर रहे हैं यदि किसी को वस्तु स्थिति का पता चल गया तो संकल्प पत्र के अनुसार हम सबको फिर 13 वर्ष का वनवास भुगतना पड़ेगा।’

कुन्ती कुछ कहें-इससे पूर्व ही भीम बोल पड़े-तात! आपने ही तो कहा था कि न्याय और औचित्य के समर्थन, अन्याय और अवाँछनीयता के प्रतिकार के लिये जो बड़े से बड़ा कष्ट सहने के लिये तैयार रहता है वही सच्चा धर्मनिष्ठ और वही सच्चा मनुष्य होता है। आप किसी प्रकार की चिन्ता न करें बकासुर मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकता अधर्म कभी धर्म से जीता नहीं-अन्याय आत्महीनता के क्षेत्र में फलता-फूलता है आत्मविश्वास को तो देखते ही उसके प्राण सूख जाते हैं सौ विजय आप सुनिश्चित समझिये रही अज्ञातवास की बात सो एक रात में किसी और प्रदेश में चले जाएंगे ऐसे तो सारा जीवन ही कष्ट और संघर्षों से भरा है उनकी चिन्ता में दुबके पड़ा रहा जाये तो समझिये संसार में न न्याय रह सकता है नीति और न सदाचार। आज्ञा दीजिये देर हो गई-वह देखिये ब्राह्मण बालक खाद्यान्न लेकर आ पहुँचा।’

युधिष्ठिर ने, कुन्ती और समस्त पाण्डवों ने जय मंगल ध्वनि की और भीम को विदा कर दिया। बकासुर का नियम था प्रतिदिन नगर से एक व्यक्ति भोजन लेकर जाता था। राक्षस उस भोजन के साथ उस व्यक्ति का भी वध कर खा जाता था। आज उस ब्राह्मण बालक की बारी थी। कुन्ती को इस बात का पता चला तो उन्होंने ही भीम को अन्याय से प्रतिकार के लिये उकसाया और ललकारा था। भीम ने भोजन सामग्री अपने हाथ में ली और बालक


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