वास्तविक धर्मात्मा

February 1972

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जरूरी नहीं जो लोग धर्म की लम्बी चौड़ी बातें करते हैं, वे वास्तव में धर्मात्मा ही हों।

यह भी जरूरी नहीं कि जो धर्म चर्चा में शामिल नहीं होते या पूजा पाठ नहीं करते है वे अधार्मिक ही ठहराये जायें।

धर्म की जानकारी उपयोगी हो सकती है पर उसका वास्तविक लाभ तभी है-जब उसे आचरण में उतारने की प्रेरणा मिले।

धर्म की जानकारी और धार्मिक कर्मकाण्डों में प्रवृत्ति क्या वस्तुतः मनुष्य को धर्मात्मा बनाती है? इस सम्बन्ध में अमेरिका की “इन्स्टीट्यूट फॉर सोशल एण्ड रिलीजस रिसर्च” संस्था ने विस्तृत शोध कार्य किया। यह शोध व्यापक क्षेत्र में की गई। पाँच वर्ष लगे और एक लाख डालर खर्च आया। इस शोध का विषय था - “करेक्टर एजुकेशन इनक्वारी”।

शोध के निष्कर्षों का उल्लेख ‘स्टडीज इन डिसीट’ नाम से प्रकाशित किया गया है। उसमें प्रतिपादन यह है धर्म चर्चा की बहुत जानकारी होने पर भी आवश्यक नहीं कि उसके आधार पर लोग उसे आचरण में लाने की भी आवश्यकता समझते हों। कितने ही भ्रष्ट, अनाचारी और अपराधी ऐसे पाये गये, जिनकी धर्म चर्चा और धर्म क्रिया में बहुत रुचि थी पर उन्होंने उतने को ही धर्माचरण माना और उसे पर्याप्त समझा, धर्म के आवश्यक अंगों को भी कभी उन्होंने जीवन में ढालने का प्रयत्न नहीं किया, वरन् वे अधर्माचरण में ही जीवन भर निरत रहे “जबकि दूसरे लोग सदाचारी जीवन को एक आवश्यक तथ्य मानते -समझते रहे और बिना धर्म कथा सुने ही, श्रेष्ठ आचरण का आदर्श प्रस्तुत किया।

शोध का बल इस बात पर है कि धर्म को आचरण में उतारने की प्रेरणा से भरा हुआ धर्म कलेवर ही व्यक्ति और समाज के लिए उपयोगी सिद्ध हो सकता है। इसके बिना तो वह आडम्बर मात्र ही बनकर रह जायगा।


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