जिसके चित्त में तरंगें उठती ही रहती हैं वह सत्य के दर्शन कैसे कर सकता है। चित्त में तरंग का उठना, समुद्र के तूफान जैसा है, तूफान में जो उस पर काबू रख सकता है, वह सलामत रहता है। ऐसे ही चित्त की अशान्ति में जो रामनाम का आश्रय लेता है वह जीत जाता है।
-महात्मा गाँधी