शरणागत वत्सलता और कर्मवीरता

December 1971

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एक बार राजा शकुन्त महर्षि तपोवन में गये। वहाँ उन्होंने सभी मुनियों के पैर छुए, संयोग से महर्षि विश्वामित्र रह गये विश्वामित्र इसे अपमान जानकर बड़े ही क्रुद्ध हुए। विश्वामित्र ने अपने शिष्य महाराज से सारी बात कही, तो राम को भी यह बात ठीक नहीं जँची। राम ने उनको प्रण दिया कि आज सायंकाल तब या तो शकुन्त को आपके चरणों में झुका दूँगा अन्यथा अपना शीश काटकर आपके चरणों में चढ़ा दूँगा। राजा शकुन्त को जब यह समाचार मिला तो भागकर माता अन्जना के यहाँ शरण ली। माता अन्जना ने उन्हें अभय दान दिया और अपने पुत्र हनुमान जी को कुटिया की रक्षा पर नियुक्त किया। श्री राम वहाँ भी पता लगाने आये। उन्होंने भक्त हनुमान जी को अन्दर जाने देने को समझाया, परन्तु हनुमानजी तो माता की आज्ञा और शरणागत की रक्षा में बद्ध थे। दोनों में घमासान युद्ध हुआ। सूर्य डूबने को जा रहा था कि हनुमान जी की गदा से आहत होकर भगवान रामचन्द्र भूमि पर गिर पड़े।

महावीर के पौरुष बल की सराहना करते हुए रामचन्द्र जी ने अपनी हार मान ली। हनुमान जी तत्काल ही उनके चरणों में गिर पड़े और अपनी धर्म रक्षा की विवशता बताते हुए क्षमा याचना करने लगे। तुरन्त ही उन्होंने शकुन्त को भी बुलाया और उनके चरणों में झुकाकर उसे भी धन्य किया।

इतने में ही विश्वमित्र जी आ पहुँचे, सबने उनको प्रणाम किया तथा शकुन्त ने अपराध के लिए क्षमा याचना की। सभी ने हनुमान जी की भरसक प्रशंसा की।


मनुष्य के जीवन की तीन बड़ी घटनायें विवाद से पूर्णतः परे होती है- प्रथम जन्म, द्वितीय विवाह, और तृतीय मृत्यु।

- आस्नि औमिले


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