आचार्य हेमचन्द्र

December 1971

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आचार्य हेमचन्द्र सौराष्ट्र की यात्रा करते हुए एक गाँव में ठहरे। शाम के समय उस गाँव का एक किसान मोटे सूत की बनी चादर लेकर आया। उसने आचार्य श्री के चरणों में वह चादर समर्पित करदी और निवेदन करने लगा ‘मेरी पत्नी ने अपने हाथ से ही सूत कात कर इस चादर को बुना है और आपकी सेवा में भेजी है। आशा है आप अवश्य स्वीकार करेंगे।

आचार्य ने राजा द्वारा प्रदत्त मूल्यवान कौशेय उतार दिया और उस किसान द्वारा दी गई खादी की मोटी चादर ओढ़ ली। कुछ दिनों बाद आचार्य को राजधानी पाटन आना था। वहाँ के महाराज कुमार पाल को उनके आने की सूचना मिली तो गाजे बाजे के साथ राज्य की सीमा पर गये और उनकी अगवानी की। मोटे वस्त्रों की ओर राजा की दृष्टि गई तो उन्हें बड़ा दुःख हुआ। उन्हें बहुमूल्य कौशेय भेट किये दीर्घकाल हो चुका है सम्भवतः उनके जीर्ण−शीर्ण हो जाने पर किसी कुषक की भेट स्वीकार करनी पड़ी होगी। राजा ने दुःखी स्वर में कहा ‘आचार्य ! इस तरह के साधारण वस्त्र पहनना तो गुर्जर देश का अपमान है।’ ‘राजन् ! अपमान की इसमें कोई बात नहीं। आपके राज्य की अधिकतर जनता ऐसे ही वस्त्र तो पहनती है। फिर क्या उन्हें देखकर आपको दुःख नहीं होता ? मैं तो राजसी वस्त्रों और खादी के वस्त्रों में कोई अन्तर नहीं समझता। मेरे लिये तो यही वस्त्र ठीक हैं।


दुःख का मूल नाश करने के लिये ब्रह्मचर्य का व्रत पालन अत्यन्त आवश्यक है।

-बुद्ध


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