एक पापी मनुष्य को एकबार अपने पापों के लिए पछतावा हुआ। उससे किसी ने कहा- ‘तू कबीरदास के पास जा। वे तेरे मन को शान्ति प्रदान करेंगे।’ वह मनुष्य जैसे रोगी अस्पताल में जल्दी जाये, उसी तरह कबीर के यहाँ गया। कबीर घर पर नहीं थे। इसलिये उनकी पत्नी ने दृढ़ता पूर्वक तीन बर भगवान का नाम लेने को कहा। पापी ने सच्चे भाव से वैसा ही किया। इससे उसका मन शान्त हो गया और वह नाचता-कूदता हुआ ईश्वर स्मरण में मस्त हो गया। इसी समय कबीर घर आ गये। ऐसे प्रेमी मनुष्य को देखकर वे बहुत प्रसन्न हुए। पत्नी ने उस भक्त का सब हाल बताया। कबीर ने खिन्न होकर अपनी पत्नी से कहा-’केवल एकबार प्रभु का नाम ले लेने से सब कुछ सिद्ध हो जाता है। तब तुमने तीन बार हरिनाम लेने को क्यों कहा ? इससे मालूम होता है कि तुमको ईश्वर पर विश्वास नहीं है।’ स्त्री बोली- ‘तीन बार नाम लेने का आशय यह था कि जिससे उप पापी का कायिक, वाचिक और मानसिक मैल दूर हो जाये।’ कबीर अपनी पत्नी की इस सूझा पर बहुत प्रसन्न हुए।