जेठ की जलती दोपहरी में किराये की गाड़ी से हुगली के नामी श्री शशिभूषण बैनर्जी अपने समधी के घर पहुँचे। जिस काम से वे गये थे, वह इतना जरूरी नहीं था। वे किसी नौकर को भी पत्र देकर भेज सकते थे। वहाँ किसी ने उनसे पूछा कि इतने से काम के लिए इस भीषण गर्मी में आपने क्यों कष्ट किया ? उन्होंने कहा- “पहले तो सोचा था कि किसी नौकर को ही भेज दूँ, लेकिन जब देखा कि धूप कड़ी है, तब नौकर को पैदल भेजने के बजाय मैं स्वयं गाड़ी करके चला आया।