इस अंक के साथ अपने जीवन का 33 वाँ वर्ष पूरा करके 34 वें वर्ष में प्रवेश करते हुए अखण्ड-ज्योति अपने प्रिय परिजनों का हार्दिक अभिनन्दन करती है। अनेक कठिनाइयों के बीच अब तक यह प्रकाश दीप जलता ही चला आ रहा है। इसका श्रेय स्वजनों की श्रद्धा, सद्भावना को ही दिया जा सकता है।
इस बार-इन दिनों अखण्ड-ज्योति के सामने एक ऐसा असमंजस भरा अवरोध आकर उपस्थित हो गया है जिसमें हम सबका चिंतित हो उठना स्वाभाविक है। सन् 71 में कागज की महँगाई बेहतर बढ़ी, स्याही के दामों में भी भारी वृद्धि हुई और छपाई कर्मचारियों के वेतन प्रायः 25 प्रतिशत बढ़ गये। इन परिस्थितियों में उसकी लागत प्रायः सवाई हो गई। पहले भी चन्दा लागत मात्र रखा जाता था। इस बढ़ी हुई महँगाई ने लागत बढ़ाकर और भी संकट उत्पन्न कर दिया। “कोढ़ में खोज” वाली कहावत की तरह अब सरकारी अध्यादेश के अनुसार दो पैसा प्रति कॉपी नया टैक्स और लग गया है। साल में चौदह पैसे हर ग्राहक के पीछे अब देना पड़ेगा। इससे लागत और भी बढ़ गई।
इन परिस्थितियों में दो ही उपाय हैं (1) पत्रिका के पृष्ठ कम कर दिये जायें (2) चंदा बढ़ाया जाय। इन दो में से एक रास्ता चुनना ही पड़ेगा। तीसरा कोई रास्ता शेष नहीं रहा। घाटे को पुरा करने के कोई अन्य अतिरिक्त साधन अपने पास नहीं हैं। अगले वर्ष अखण्ड-ज्योति में एक नया स्तम्भ आरम्भ होने जा रहा है-”गुरुदेव और उनकी दिव्य अनुभूतियाँ” इसमें उनकी अब तक की अविज्ञात और रहस्यमय अनुभूतियों की चर्चा रहेगी। जो अब तक प्रकाश में नहीं आई और जिन्हें जानने के लिए आमतौर से सभी परिजन लालायित रहते थे। दूसरे कुँडलिनी योग साधना जगत् की एक अद्भुत उपलब्धि है। इन दिनों की उनकी तपश्चर्या भी इसी शोध पर केन्द्रित है। यह प्रशिक्षण साधकों को कुछ अद्भुत उपलब्ध करा सकता है सो यह लेखमाला भी चलती ही रहनी है। विज्ञान और अध्यात्म का जो अद्भुत समन्वय अखण्ड-ज्योति ने प्रस्तुत किया है उससे विश्व भर के बुद्धिजीवी वर्ग में हलचल उत्पन्न हो गई और नास्तिकता का प्रवाह उस अद्भुत प्रतिपादन के कारण उलटकर आस्तिकता की ओर बहने लगा है। लोग इस सम्बन्ध में और भी अधिक पढ़ना-जानना चाहते हैं।
इन परिस्थितियों में पृष्ठ कम कर दिये जाने से पाठकों को अत्यन्त महत्वपूर्ण जानकारियों से वंचित रहना पड़ेगा। अस्तु दूसरा ही मार्ग अपनाया जा रहा है। एक रुपया चन्दा बढ़ाना पड़ रहा है ? अब अखण्ड-ज्योति का चन्दा 6 रुपये के स्थान पर सात रुपया होगा। विवशता को देखते हुये प्रेमी परिजन इसे स्वीकार करेंगे ऐसा विश्वास है। इस चन्दा वृद्धि के साथ-साथ आगे कुछ पृष्ठ भी बढ़ाये जा रहे हैं और टाइटिल पृष्ठ भी अधिक मजबूत लगाने का सुधार किया जा रहा है।
इस स्थिति में घाटे की पूर्ति तभी सम्भव है जब ग्राहक संख्या बढ़े। परिजनों को बसन्त पंचमी पर्व के उपलक्ष्य में भी और पत्रिका के सामने उपस्थित संकट को ध्यान में रखते हुये भी नये ग्राहक बढ़ाने और पुराने से चन्दा संग्रह करके इसी माह भिजवाने का अनुरोध है। नये अध्यादेश के अनुसार बची हुई कापियों पर टैक्स लगेगा इसलिये अंक उतने ही छपाये जाया करेंगे जितने ग्राहक होंगे। इसलिये चन्दा भिजवाने में जल्दी करने का अनुरोध विशेष रूप से करना पड़ रहा है। मनीआर्डर की अपेक्षा बैंक ड्राफ्ट या पोस्टल आर्डर की जगह पोस्टल आर्डर या ड्राफ्ट भेजना अधिक सुविधाजनक रहेगा। आशा है प्रिय परिजनों का इस विशेष परिस्थिति में उत्साहवर्धक सहयोग प्राप्त होगा।