प्रेरणा और प्रकाश भरे इस पुण्य अवसर पर हमारी भावनायें उभरें

December 1971

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अखण्ड -ज्योति और युग निर्माण परिवार द्वारा इस वर्ष वसन्त पंचमी का पर्व उत्साहपूर्ण और भाव भरे वातावरण में मनाये जाने का निश्चय किया गया है। यों भगवती सरस्वती का जन्म दिन ज्ञान-पर्व और कला-पर्व के रूप में चिरकाल से मनाया जाता है और उससे सद्ज्ञान के अभिवर्धन एवं कलात्मक जीवन जीने की प्रेरणा हर वर्ष ग्रहण की जाती है। यह परम्परा तो चलती ही है, चलनी भी चाहिए। पर हम लोगों के लिए इस पर्व का महत्त्व कई दृष्टि से अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है।

अखण्ड-ज्योति का जन्म दिन वसन्त पंचमी है। युग-निर्माण पत्रिका का शुभारम्भ वसन्त पंचमी को हुआ। युग परिवर्तन का जन जागरण अभियान आन्दोलन इसी दिन से आरम्भ हुआ। आर्ष साहित्य का प्रकाश परिचय समस्त विश्व को कराने के लिये कदम इसी दिन उठाया गया। गायत्री तपोभूमि के शिलान्यास का यही दिन है। युग-निर्माण विद्यालय इसी पर्व से शुरू किया गया। परिवार की प्रायः समस्त महत्वपूर्ण गति विधियों का जन्म दिन वसन्त पंचमी ही है। गुरुदेव को आत्मबोध का प्रकाश इसी शुभ मुहूर्त में मिला था। उन्होंने अपनी 24 वर्षीय गायत्री पुरश्चरण साधना अखण्ड दीपक पर उसी दिन आरम्भ की थी। इतना ही नहीं वे हर वसन्त पंचमी पर एक अभिनव दिव्य प्रकाश प्राप्त करते रहे और इस आधार पर अगले एक वर्ष का कार्यक्रम निर्धारित करते रहे। एक-एक कदम हर वसन्त पंचमी को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने इतनी लम्बी यात्रा की और लक्ष्य के समीप तक पहुँचे।

हम लोग गुरुदेव से- उनके मिशन से अविच्छिन्न रूप से सम्बद्ध हैं। मात्र पत्रिकाओं के पाठक ही हम लोग नहीं है, उससे कही आगे हैं। जैसे कि वे हमें अपना घनिष्ठ कुटुम्बी और आत्मा के साथ लिपटे हुए प्राण प्रिय परिजन मानते हैं- बहुत अंशों में वैसे हैं भी। मिशन के भी अंग बन गये या बनते जा रहे हैं। दर्शक या प्रशंसक की आरम्भिक स्थिति से हम लोग काफी आगे बढ़ गये हैं। मिशन हमारे मस्तिष्क और हृदय में समा चुका है- अब वह रोम-रोम में ओत-प्रोत होता चला जा रहा है, कर्तव्य के रूप में फूट ही पड़ना चाहता है।

ऐसी दशा में हम सब लोग अपने प्रकाश और प्रवाह के मूल स्त्रोत वसन्त पंचमी पर्व को भावनापूर्वक मनायें तो यह उचित और आवश्यक ही नहीं वरन् कर्तव्य की पूर्ति भी है। हम अपनी श्रद्धा भावना उस उपलब्ध प्रकाश के प्रति यदि इस अवसर पर प्रकट करें तो उसे कृतज्ञता की सराहनीय अभिव्यंजना ही कहा जायगा। इस प्रयत्न में हम शालीनता और महानता को एक कदम आगे ही बढ़ाते हैं।

तपश्चर्या के लिए जाते समय व विदाई सम्मेलन में गुरुदेव ने कहा था- वसन्त पंचमी पर्व पर चेतना एवं प्रेरणा के रूप में वे प्रत्येक परिजन के समीप पहुंचेंगे। और उनकी कुछ उपलब्धियाँ होंगी तो उसका अंश आभास उन्हें प्रदान करेंगे। उनके वचन और आश्वासन सदा तथ्यपूर्ण होते रहे हैं। कौन जाने हम में से किसे किस स्तर का अनुदान उस अवसर पर मिले ? वे स्वयं महान थे, उनकी महानता की एक किरण भी यदि हमें मिल सके तो निस्संदेह यह जीवन तो सफल बना सकने योग्य एक महत्वपूर्ण उपलब्धि होगी। उस अवसर पर हमारे अन्तःकरण उस प्रकाश को ग्रहण करने योग्य पात्रता भरी कोमल भाव स्थिति में रह सके, इस दृष्टि से भी वसन्त पंचमी पर्व मनाये जाने और उसमें सम्मिलित रहने की आवश्यकता है। गुरुदेव का जीवन क्रम- वस्तुतः एक तत्व दर्शन था जिसे जीवन विधा का समग्र शास्त्र भी कह सकते हैं। उसको जितनी निकटता और गहराई के साथ देखा पढ़ा जा सके, उतना ही सर्वांगीण प्रगति के पथ पर बढ़ चलने का प्रकाश और मार्ग दर्शन मिल सकता है। इस प्रयोजन के लिए वसन्त पर्व से बढ़कर और कौन सा शुभ अवसर होगा ?

जहाँ युग निर्माण परिवार के संगठन है। वहाँ सामूहिक रूप से, जहाँ नहीं है वहाँ व्यक्तिगत रूप से वसन्त पर्व आगामी 20 जनवरी को मनाने की तैयारी करनी चाहिए। भावनाभिव्यक्ति के प्रत्यक्ष क्रिया कलाप के रूप में शाखायें प्रभात फेरी, सामूहिक जप, हवन, ज्ञान-घटों का पूजन, श्रद्धा सुमन समर्पण , दीप दान, संगीत, प्रवचन जैसे कार्यक्रम रखें। व्यक्तिगत रूप से इसका छोटा रूप देखा जा सकता है। घर, परिवार, पड़ौस के लोग को इकट्ठे करके यही कार्यक्रम चल सकते हैं। प्रभात फेरी को छोड़ा जा सकता है।

मिशन को समर्थ और सक्रिय बनाने के लिए परिजन टोलियाँ बनाकर जन संपर्क साधने के लिये प्रचार-प्रसार पर निकलें। पत्रिकाओं के सदस्य बढ़ाना, वर्तमान ग्राहकों को संगठन के सक्रिय सदस्य बनने की प्रेरणा देना, जहाँ सम्भव हो वहाँ गायत्री यज्ञ सहित युग-निर्माण सम्मेलन होने वाले थे, वे लोग इसी अवसर पर अपना कार्यक्रम रखे तो अधिक अच्छा हो। इसके लिये उन्हें प्रवचनकर्ता भर अपने समीप ढूंढ़ने पड़ेंगे बाकी सारा कार्य पूर्ववत् अधिक सुविधा और अधिक उत्साह भरे वातावरण में सम्पन्न हो सकता है। जहाँ सुविधा हो वहाँ यह आयोजन दो या तीन दिन के भी रखे जा सकते हैं। शाखायें हर हालत में वसन्त पर्व तो मनायें ही। यदि इसके बाद भी दुबारा कोई बड़ा आयोजन सम्भव हो तो ही उसकी अन्य व्यवस्था सोची जाये। यदि एक बार ही सम्भावना हो तो उसे वसन्त पर्व पर ही कर लिया जाय। शाखा को समर्थ बनाने के लिये चल पुस्तकालय जैसे उपकरण इसी अवसर पर बढ़ाने का प्रयत्न किया जाय। युग-निर्माण शाखाओं की स्थापना, चल पुस्तकालय, दीवारों पर आदर्श वाक्य लिखने का अभियान, दुष्प्रवृत्ति विरोधी आन्दोलन आदि गतिविधियों का उद्घाटन इसी अवसर पर किया जा सकता है। ज्ञान-घटों की स्थापना करे प्रतिदिन एक घण्टा समय और दस पैसा देने का नियम नियमित बनाकर घरेलू ज्ञान मन्दिर चलाने का सक्रिय सदस्यता की शर्त- का पालन इस अवसर पर अधिकाधिक लोगों से आरम्भ कराया जाय। हममें से प्रत्येक परिजन युग-निर्माण योजना की सक्रिय सदस्यता आरम्भ करे। श्रद्धा भी व्यक्ति की यथार्थता और गम्भीरता का प्रत्यक्ष परिचय होगा।

युग निर्माण आन्दोलन की गतिविधियों में इन दिनों आशाजनक वृद्धि हुई है। उसके समाचार, सूचनायें, तैयारियाँ आदि का विवरण सभी को ज्ञात होता रहना आवश्यक है। इससे परस्पर उत्साह बढ़ता और कार्यशैली की जानकारी तथा दिशा मिलती है। इस प्रयोजन के लिये युग-निर्माण योजना कई महीने से अनेक रूप में निकलने लगी है। आन्दोलन की समस्त गति विधियाँ और प्रेरणायें अब उसी में छपती हैं अपनों से अपनी बात का स्तम्भ भी अब पाक्षिक में ही चला जायगा। मासिक पत्रिकाओं में “गुरुदेव और उनकी अनुभूतियाँ” नये सिरे से आरम्भ होगा।

वसन्त पर्व जहाँ जिस प्रकार मनाया जाय ता0 21 को ही उसका समाचार भेज देना चाहिए ताकि ........ में उसे छापा जा सके।

आशा है वसन्त पर्व मनाने की तैयारी हर जगह तुरन्त आरम्भ कर दी जायगी और उसे मिशन गुरुदेव के और अपने गौरव को ध्यान में रखते हुए पूरे उत्साह और मनोयोग के साथ मनाने का प्रयत्न किया जायेगा।



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