हिमालय के अमर आदम

December 1971

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जीव शास्त्री कहते हैं कि वह रीछ भालू की किस्म का एक जंगली जन्तु है ? विकास शास्त्री उसे नियंडरथल मनुष्य कहते हैं और जीव जन्तुओं से विकसित हुये मनुष्य की एक खोई हुई कड़ी (मिसिग लिंक) मानते हैं। भारतीय उन्हें भटकी हुई प्रेतात्मायें यक्ष व किन्नर कहते हैं उनके भारतीय और नेपाल की तराई क्षेत्र के निवासियों की मान्यता है कि रामायण और महाभारत काल से भी पूर्व काल के सिद्ध योगी - जिन्होंने शरीर से भी अमरत्व प्राप्त कर लिया है वह योगी ही हिमालय की अतुल ऊँचाइयों में बर्फ के सागर में सानन्द निवास करते हैं ?

अनेक प्रकार की कल्पना और मान्यता का यह जीवन केवल भारत वरन् सारे संसार के लिये ज्ञान-विज्ञान की एक नई पहेली के रूप में उभरा। उसके अस्तित्व के बारे में किसी को शंका नहीं है पर बर्फ में रहने वाला यह हिम मानव कौन है ? क्या करता है ? और उस क्षेत्र में जहाँ जीवन के अस्तित्व की कल्पना भी नहीं की जा सकती किस प्रकार नग्न शरीर विचरण करता है ? यह प्रश्न आज तक भी कोई हल नहीं कर पाया।

पहले तो लोग उसके अस्तित्व पर भी शंका करते थे और उसे भारतीयों का अन्ध विश्वास कहा करते थे। पर वह वर्णन जो किंवदंतियों के रूप में चिरकाल से चले आ रहं थे पहली बार उस समय सत्य प्रमाणित हुये जब सुप्रसिद्ध पर्वतारोही तेनसिंह और एडमंड हिलेरी ने 1954 में हिमालय की चढ़ाई की। एडमंड हिलेरी ने 19 हजार फुट की ऊँची चोयाँग घाटी पर अपना खेमा गाड़ रखा था उस समय की बात है एक दिन जब वे उस क्षेत्र के निरीक्षण के लिए बाहर निकले और बर्फ पर चलते हुये काफी दूर निकल गये तब एकाएक उन्हें बर्फ पर बने हाल ही के पदचिह्नों ने चौका दिया। हिम मानव की लोक कथायें उनने सुनी अवश्य थी यह भी सुना था कि यह प्राणी उस दुर्गम क्षेत्र में रहता है जहाँ मनुष्य पहुँच भी नहीं सकता था पर जहाँ पहुँचने के लिये उन्हें स्वयं अपने जीवन रक्षार्थ करोड़ों रुपयों की लागत के उपकरण ले जाने पड़ते थे फिर भी मौत हर क्षण छाया की तरह घूमती रहती है उस बीहड़ हिमस्थली में मनुष्य के निवास की तो बात वे सोच भी नहीं सकते थे। पद चिन्हों का पीछा करते हुये वे काफी दूर तक गये पर कहीं न कुछ दिखा न कुछ मिला। अपनी यात्रा के संस्मरणों में पहली बार उन्होंने इस हिम मानव का विस्तार से उल्लेख किया तब विज्ञान को अनेक नई धारणायें मिली कि जीवन के अस्तित्व के लिये अति शीत और उच्चतम ताप भी बाधक नहीं हैं। मनुष्य शरीर संसार की हर परिस्थिति में रखने योग्य बनाया जा सकता है। भले ही भारतीय योग दर्शन और सिद्धियों जैसे वे आधार आज लोगों की समझ में न आये पर यह निर्विवाद सत्य है कि मनुष्य उन अभूतपूर्व शक्तियों और सिद्धियों का समन्वय है जिन्हें विकसित कर वह शरीर से ही परमात्मा की कल्पना को सार्थक कर सकता है।

पीछे हिम मानवों की खोज का सिलसिला चल पड़ा। हर पर्वतारोही उनकी टोह लेने लगा। उससे उनके बारे में नई नई विस्मय बोधक जानकारियाँ मिलीं। हिम मानव एक नहीं अनेक हैं। उन्हें देखा भी गया है पर अब तक उनका फोटो शायद ही कोई ले पाया हो क्योंकि वह शरीर से असाधारण क्षमता वाले होते हैं कुछ लोगों का तो कहना है किसी भी स्थान में अन्तर्धान भी हो सकते हैं और जिस तरह कोई मनुष्य पानी में डुबकी लगाकर दूसरे किसी स्थान पर जा निकलता है उसी प्रकार कहीं भी लुप्त हो जाने के बाद वे कही भी जाकर प्रकट भी हो सकते हैं यदि ऐसा नहीं होता तो हिमालय की निचली ताराइयों में जहाँ आबादी रहती है वहाँ वे कैसे उतर आते और एक रात के अन्तर से ही जो यात्रा कई महीनों में सम्पन्न हो सकती है उसे पूरा करके तुरन्त ही 20 हजार से अधिक ऊँचाई पर कैसे भाग जाते ?

चेहरा लम्बा और पतला होता है, आंखें लाल और दाँत बड़े बड़े 7 से 8 इंच लम्बी जीभ और बीसियों आदमियों के बराबर की ताकत तभी सम्भव है जबकि व्यक्ति नितान्त ब्रह्मचारी और प्राकृतिक जीवन जीता हो या फिर योग सिद्ध हो। डॉ. इंजार्ड का कहना है कि वे मांसाहारी होते हैं उसके प्रमाण में वे बताते हैं कि मैंने उसके मल (यतीज ड्रापिंग्स) का रासायनिक विश्लेषण कर लिया है पर अन्य लोगों का कथन है कि वे पूर्ण शाकाहारी होने का प्रमाण तराई क्षेत्रों में प्रचलित लोक गीत और कथाओं में भी मिलता है। रात को जब स्त्रियां सोने की तैयारी करती हैं तो बड़ी बूढ़ी माताएं वधुओं को हिदायत देती है कि देखो बहू चक्की में आटा या गेहूँ पड़ा न रह जाये नहीं तो हिम मानव आयेगा और उसे खा जायेगा।

सोचने वाली बात है कि केवल आटा और चक्की में बचे हुये दानों के लालच में हिम मानव 20 फुट की दुर्गम पहाड़ियां क्यों उतरेगा। इससे पूर्व उसे हजारों किस्म के जंगली जानवर मिल सकते हैं, आदमखोर हो तो वह गाँव के बच्चों को उठाकर ले जा सकता है दाने ही क्यों चुराने लगा ? उसके स्वभाव से पता चलता है कि वह शाकाहारी है उसके व्यवहार और क्रिया कलापों से पता चलता है कि वह कोई अति मानवीय शक्तियों का पुंज कोई सिद्ध योगी ही होना चाहिये। कुछ तो उस क्षेत्र का जलवायु ही सहायक होता है कुछ योगाभ्यास द्वारा विकसित शक्तियाँ हो सकती हैं जिनके कारण वह उस एक क्षण में बर्फ कर देने वाले दुर्गम क्षेत्र में भी सानन्द जीवन जीता है।

काठमाण्डू के लामा श्री पुण्य वज्र ने बहुत समय तक हिमालय के इस प्रदेश में बिताये है एक यती योगी सन्त संन्यासी के ढंग पर उन्होंने हिम मानव की खोज की उनका कहना है कि मैं बहुत समय तक उनके साथ रहा और पाया कि उनकी क्षमतायें बहुत ही विलक्षण हैं। यद्यपि उनकी बातों को पाश्चात्य लोग प्रामाणित नहीं मानते तो भी यह बात तो अमरीका के सुप्रसिद्ध जीव विशेषज्ञ श्री कैरोल वायमैन ने भी स्वीकार की है कि हिम मानव की सामर्थ्य विलक्षण है उदाहरणार्थ वह बहुत दूर की गन्ध से ही पहचान सकता है कि इस क्षेत्र में किधर से मनुष्य या कोई दूसरा जीव जा रहा है। वे मुख को देखकर ही भावों को भाँप जाते हैं उसकी ताकत 15 व्यक्तियों की ताकत से बढ़कर होती है। वह अधिकाँश बच्चों को ही दिखता है उससे यह भी तय है कि वह मनुष्यों के स्वभाव से परिचित होता है और उसके विश्वासघात का उसे भय अवश्य रहता है तभी तो वह उसकी परछाई भी देखना नहीं चाहता। एक बार काठमाण्डू के एक बहन भाई ने उसे देखा। डॉ. सिल्कि जानसन ने उन दोनों बच्चों को मनुष्य से मिलती आकृतियों वाले कुछ बन्दरों और गुरिल्लाओं के चित्र दिखाकर पूछा तुमने जिस आकृति को देखा वह इनमें से किससे मिलता जुलता है। अलग अलग ले जाकर चित्र दिखाने और पूछे जाने पर दोनों ही बालकों ने गुरिल्लों और औराँग ओटान के चित्र चुनकर कहा - वह इसी शक्ल से मिलता जुलता था पर यह नहीं इससे भिन्न था।

अनेक बार दिखा है हिम मानव और हर बार उसने वैज्ञानिकों की बुद्धि को चमकाया- चौंधाया है। अनेक प्रकार की कल्पनाओं और मान्यताओं के बावजूद यह निश्चित नहीं हो सका कि यह हिम मानव है अथवा कोई जंगली जीव है। जो भी हो उसके व्यवहार से जो बातें प्रकाश में आई हैं यदि वे यह पुष्टि करें कि हिमवासी यह आत्मायें यदि अति पुरातन अमर पुरुष हो तो कोई आश्चर्य नहीं।


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