मात्र संयोग ही नहीं - अदृश्य सहयोग भी

December 1971

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बिहार में एकबार जोरदार भूकम्प आया। कई दिन तक रह रहकर पृथ्वी कॉपी और जब स्थिर हुई तब पता चला कि नगर में नगर ध्वस्त हो चुके है। हजारों व्यक्तियों की जाने गई इस दुर्घटना में। मुँगेर नगर में उस दिन बाजार थी। दोपहर का समय था हजारों व्यक्ति क्रय-विक्रय करने में तल्लीन थे तभी आया भूचाल और उन हजारों दुकानदारों तथा खरीददारों को मकानों के मलबे में दाब कर चला गया।

पीछे आये सहायता दल सिपाही-सैनिक और समाज सेवी संस्थाएं। मलबे की खुदाई प्रारम्भ हुई। एक दो दिन तक तो कुछ लोग जीवित कुछ चोट खाये निकलते रहे पर तीसरे दिन से जो लाशें निकलनी शुरू हुई तो फिर पन्द्रह दिन तक लाशें ही निकलती रही ढेर लग गया मृतकों का।

गिरे हुये मकानों का मलबा निकालने का काम अभी तक बराबर चल रहा था। एक स्थान पर काम चल रहा था, एकाएक कुछ लोग चौंके क्योंकि नीचे से आवाज आ रही थी-’थोड़ा धीरे से खोदना। 15 दिन तक जमीन में दबे रहने पर भी यह कौन जीवित पड़ा है इस आश्चर्य से मिट्टी हटाई जाने लगी।

कई बड़ी-बड़ी धन्नियाँ तथा शहतीरें निकालने के बाद निकला एक अधेड़ आयु का व्यक्ति केले के छिलकों में पड़ा हुआ, एक भी चोट या खरोंच नहीं थी उसे सबसे आश्चर्य भरी बात तो यह थी ढेर सारी मिट्टी और तख्तों के नीचे दबे उस आदमी ने बिना खाये पिये साँस लिए 15 दिन कैसे काट दिये।

उसी से पूछा गया- भाई तुम कैसे बच निकले तो उसने आप बीती घटना इस प्रकार सुनाई-

“मैं आया था-केले बेचने , इस मकान की दालान के नीचे सिर पर टोकरी रखे खड़ा था कि भूचाल आ गया। छत टूट कर ऊपर गिरी मैं दब गया टोकरी कुछ इस प्रकार उल्टी की सारे केले उसके नीचे आ गये और इस तरह वे पिचकने या सड़ने गलने से बच गये। इसी में से निकाल-निकाल कर केले खाता रहा।”

‘पेट के नीचे का भाग कुछ इस तरह मिट्टी से पट गया कि सिरोभाग से कमर भाग का सम्बन्ध ही टूट गया। टट्टी पेशाब की बदबू से इस प्रकार बचाव हो गया।’

“एकबार पृथ्वी फिर हिली और उसके साथ ही हिला यह मलबा, न जाने कैसे एक सूराख हो गया वह हलकी सी धूप की गर्मी भी देता रहा और शुद्ध हवा भी। अब जीते रहने के लिए एक ही वस्तु आवश्यक रह गई थी वह थी पानी। दैवयोग से पृथ्वी तिबारा कांपी तब इस दुकान का फर्श टूटा और उसके साथ ही पानी की एक लहर इधर आ गई और इस गड्ढे को पानी से ऊपर तक भर गई। हवा और धूप यों छेद से मिल गया। केले पास थे ही, पानी भी परमात्मा ने भेज दिया। यह सब व्यवस्थायें भगवान् ने जुटा दी तो मुझे विश्वास हो गया कि मुझे अभी नहीं मरना।

“इसी विश्वास के सहारे आज तक जीवित रहा। आज का दिन आखिरी दिन है जबकि सब केले समाप्त हो गये है, पानी नहीं बचा है, रोशनी भी नहीं आ रही थी पर आप सब लोग आ गये सो मैं आप लोगों को भगवान् की मदद ही मानता हूँ।” इतना कहकर उसने कृतज्ञता की दो बूँद आँखों से लुढ़का दी।

इस घटना का वर्णन महात्मा आनन्द स्वामी ने एक ही रास्ता पुस्तक में किया है और लिखा है कि इस तरह की घटनायें बताती है कि संसार अपने कर्त्ता और स्वामी से रिक्त नहीं है।


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