पुनर्जन्म की मान्यता-प्रामाणिकता की कसौटी पर

December 1971

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ईसाई तथा मुसलमान धर्म में पुनर्जन्म को मान्यता नहीं हैं। उनके यहाँ ऐसा माना जाता है कि महाप्रलय के समय परमेश्वर के यहाँ पड़ी रहेंगी। नया जन्म तो तब होगा जब नई सृष्टि बनेगी।

वैज्ञानिक ऐसा मानते हैं कि पंच तत्वों के अमुक सम्मिश्रण से जीव बनते हैं और शरीर विघटन के बाद उनकी सत्ता समाप्त हो जाती हैं। जैसे पेड़ पौधे उगते मरते रहते हैं। उसी तरह मनुष्य भी प्राकृतिक उद्भिजों की तरह जन्मते मरते हैं। आत्मा का स्वतन्त्र अस्तित्व नहीं मानते ऐसी दशा में पुनर्जन्म की बात ही कहाँ उठती हैं।

भारतवर्ष में भी किसी समय एक ऐसा ही नास्तिक सम्प्रदाय किया था कि-”यह जीवन तभी तक है जब तक जीवन हैं। फिर इस संसार में किसी को आना नहीं हैं। इसलिए जब तक जिन्दगी हैं, सुखपूर्वक जीना चाहिए। भले ही कर्ज करना पड़े पर घी पीकर मौज मनानी चाहिए।”

इस जन्म में कर्मों का फल न मिला तो अगले जन्म में पुण्य फल मिलने की आशा से शुभ कर्म करते हैं। और पुलिस, कचहरी आदि से बच गये मो भी अगले जन्म में बुरे कर्मों का फल मिलेगा। जिसका कर्ज लिया हैं उसका अगले जन्म में चुकाना पड़ेगा। इस विश्वास के आधार पर लोग सत्कर्म करने की प्रेरणा प्राप्त करते हैं और दुष्कर्म से बचते हैं। अतएव पुनर्जन्म को अध्यात्म का बहुत बड़ा आधार माना गया हैं। पर आधुनिक धर्म सम्प्रदायों ने, तथा विज्ञान वेत्ताओं ने इस मान्यता पर जो प्रहार किया हैं उससे नैतिकता और धर्म निष्ठा की नींव कमजोर ही हुई है।

किन्तु पुनर्जन्म का सिद्धाँत काल्पनिक नहीं हैं। उसकी जड़ें काफी गहरी हैं और उसका प्रतिपादन तत्व दर्शी ऋषियों ने सूक्ष्म अनुभूतियों एवं प्रामाणिक तथ्यों के आधार पर किया हैं। अपने धर्म पुराणों में ऐसे अनेक प्रमाण एवं इतिहास मिलते हैं जिनमें पग-पग पर पुनर्जन्म की सिद्धि होती हैं।

कई बार ऐसी घटनायें भी सामने आती हैं जिनमें किसी बालक को पूर्व जन्म की स्मृति आई उसने अपने उस स्मरण की चर्चा की। पता लगाया गया तो बालक का कथन सत्य को भी सिद्ध करने वाले प्रमाण मिले और अविश्वासियों को सिद्ध करती हैं। ऐसी घटनायें भारतवर्ष तथा हिंदू धर्मावलम्बियों में ही नहीं अन्य देशों तथा अन्य धर्मों में भी घटित हुई हैं। उनके बारे में तो यह संदेह भी नहीं किया जा सकता कि ऐसा पूर्व मान्यताओं के आधार पर कहा जा रहा होगा, ऐसे कुछ प्रमाण नीचे प्रस्तुत किये जा रहे हैं-

अमेरिका के कोलोराडी प्यूएली नामक में रुथ सीमेंन्स नामक लड़की ने अपने पूर्वजन्म का सही हाल बता कर ईसाई धर्म उन अनुयायियों को आश्चर्य में डाल दिया हैं जो पुनर्जन्म के सिद्धान्त को नहीं मानते। उपरोक्त लड़की को मोरे वनस्टाइन नामक विद्या विशारद ने अपने प्रयोग से अर्धमूर्छित करके उसके पर्व जन्म की बहुत सी जानकारियाँ प्राप्त कीं। उसने बताया कि 100 वर्ष पूर्व आयरलैण्ड के कार्क नामक नगर में पहले उसका जन्म हुआ था, तब उसका नाम ब्राइडी मर्फी और उसके पति का नाम मेकार्थी था। जो बात लड़की ने बताई थीं उनकी जाँच करने अमेरिका के कुछ पत्रकार आयरलैण्ड गये और लड़की के बताये विवरणों को सही पाया।

इस्तम्बूल(तुर्की) की विज्ञान अनुसन्धान परिषद ने पुनर्जन्म की एक घटना को स्वयं जाँच कर कहा है- निस्संदेह यह पुनर्जन्म की घटना हैं। इसे एक शरीर में दो आत्माओं के प्रवेश जैसी भूत-प्रेत स्थिति में नहीं गिना जा सकता।

चार वर्ष के बालक इस्माइल अतलिंट्रलिक पूर्व जन्म दक्षिण पूर्वी के अदना नामक गाँव का निवासी-विद सुजुलयुस था। इसकी हत्या की गई थी। वह अपने पीछे 3 बच्चे छोड़ गया था-नाम थे गुलशराँ, लकी और हिकमत। चार साल का इस्माईल सोते-सोते वो बच्चों को पुकारने लगता और उनकी याद में रोने लगता। घर वाले इस अजीब बात से परेशान थे।

एक दिन इस्माइल ने एक फेरी वाले को आइसक्रीम बेचते देखा। उसने अजनबी का नाम लेकर पुकारा-महमूद तो साग-सब्जी बेचते थे, अब आइसक्रीम बेचने लगे। फेरी वाला दंग रह गया। यह बच्चा कैसे उसका नाम जानता है और कैसे उस पिछले व्यापार की चर्चा करता जब कि उसका जन्म भी नहीं हुआ था, बच्चे ने कहा तुम भूल गये मैं तुम्हारा चिर परिचित आविद हूं उसका कई साल पहले कत्ल हो गया था।

पत्र प्रतिनिधि बच्चे को अदना नगर ले गये। वहाँ वह अपनी पूर्व जन्म की बेटी गुलशराँ को देखते हुए पहचान गया और मेरी बेटी-प्यारी बेटी गुलशराँ कहकर आँसू बहाने लगा। उसने अपने हत्या के स्थान अस्तबल को दिखाया और बताया कि रमजान ने मुझ पर कुल्हाड़ी से हमला किया और मार डाला। इसके बाद वह अपनी कब्र पर पत्रकारों को ले गया जहाँ उसे दफनाया गया था। पुलिस ने भी इस कत्ल की ठीक वैसी ही जाँच की थी जैसी कि बच्चे ने बताई। हत्यारे को उससे पहले ही फाँसी लग चुकी थी। बालक इस्माइल का चाचा उससे एक दिन क्रूर व्यवहार करने लगा तो उसने चिल्ला कर कहा भूल गये मेरे ही बाग में काम करते थे और मैंने ही तुम्हें मुद्दतों रोटी खिलाई थी सचमुच आविद के इस जन्म के चाचा पर भारी अहसान थे।

लेवनान के कारनाइल नगर से 67 किलोमीटर दूर खेरवी गाँव के एक अहमद नामक लड़के ने कुछ बड़ा होते ही अपने पूर्व जन्म के अनेक विवरण बताये जिसमें ट्रक दुर्घटना, पैरो का खराब होना, प्रेमिका से विफलता, भाई का चित्र, बहिन का नाम आदि के वे संदर्भ प्रकाश में आये जिनसे बालक का पूर्व परिचित होना सम्भव न था। बालक ड्रज वंश का -इसलाम धर्मावलम्बी हैं। आमतौर से उस वातावरण में पुनर्जन्म की मान्यता नहीं हैं तो भी इस घटना ने उन्हें पुनर्विचार के लिए विवश कर दिया।

तिब्बत के शासक और धर्म गुरु दलाई लामा की मान्यता है कि मृत्यु के बाद दिवंगत लामा की आत्मा किसी बालक के रूप में जन्म लेती है और उसे ही उत्तराधिकारी बनाया जाता है। वे अपने को भगवान् बुद्ध के अवतार कहते हैं और हर लामा में वह आत्मा क्रमशः अवतरित होती चली आती हैं।

वर्तमान चौदहवें दलाई लामा जो अब भारतवर्ष में हैं। दो वर्ष की आयु में खोज निकाले गये। तेरहवें दलाई लामा चुँगत्येकु-ग्यात्सो के स्वर्गवास के उपरान्त यह खोज हुई कि उन्होंने कहाँ जन्म लिया हैं। रीजेन्ट ने एक तिमंजिले मठ के पास किसी चीनी किसान का घर है उसी में स्वर्गीय आत्मा ने जन्म लिया है। खोज के बाद वह स्थान ढूंढ़ निकाला गया। बालक दो वर्ष का था तो भी उसने तेरा लामा, मेरा लामा कहकर ‘सेरा मठ के लामा को पहचान लिया और उससे वह माला लेने को मचल पड़ा जो तेरहवें लामा की थी। बालक के शरीर पर भी स्वर्गीय लामा जैसे चिन्ह पाये गये और उन्हें लाकर तिब्बत के मठ में अभिषेक किया गया।

मिदनापुर (बंगाल) के कालीचरण घोषाल एम.ए. पास करने के बाद एकाउन्टेंट जनरल के दफ्तर में नौकर हो गये। पीछे उनका तबादला मद्रास हो गया। एक दिन एक.के.वी नायर नामक मद्रासी युवक उनसे मिलने आया और बोला मैंने देखते ही यह अनुभव किया कि आप पहले जन्म के मेरे छोटे भाई हैं। घोषल जी को इस पर विश्वास न हुआ। अन्ततः यह निश्चय हुआ कि वस्तुस्थिति जानने के लिए बनारस चला जाय जहाँ कि उनके पिताजी रहते थे। दोनों गये। युवक ने पिताजी को ऐसी अनेक बातें बताईं जो उनके निजी परिवार के अतिरिक्त और किसी को मालूम न थी। युवक की यह बात भी सच निकली कि उसे 12 वर्ष की आयु में डाकुओं द्वारा मारा गया था।

गोपी गंज (मिर्जापुर) निवासी पं. मधुसूदन त्रिवेदी अपना नगर छोड़ कर मुगलसराय चले गये और वहाँ अध्यापन का काम करने लगे। उनका लड़का विवाह योग्य हुआ और कानपुर से उसका विवाह सम्बन्ध पक्का हुआ। लड़की की जब गोद भरने की रस्म हो रही थी तो उसने अपने भावी ससुर त्रिवेदी जी को पूर्व जन्म की स्मृति के अनुसार पहचान लिया उनका पूर्व जन्म का नाम गोपाल था। प्लेग से उनकी मृत्यु हुई। लड़की ने अनेक रहस्यमय बातें प्रकट की तथा उनके साथी अन्य लोगों के नाम बताये जो जाँच करने पर अक्षरशः सही निकले। लड़की ने पंडित जी द्वारा पूर्व जन्म में समय-समय पर उच्चारण किये जाते रहे श्लोकों के भी कुछ पद सुनाये।जबकि वह पढ़ना-लिखना बिलकुल भी नहीं जानती थी ।

बंगाल के प्रोफेसर प्रणवेन्द्रपाल ने पुनर्जन्म सम्बन्धी घटनाओं का विस्तृत विवरण प्राप्त करने के लिये व्यापक दौरा किया था। उनकी संग्रहित घटनाओं में से कुछ इस प्रकार हैं-

1. बदायूँ जिले के 21 वर्षीय प्रमोद कुमार ने अपने पूर्व जन्म के मुरादाबाद निवासी मात-पिता, पत्नी आदि को पहचाना। अपनी मृत्यु का कारण पेट दर्द बताया। सम्बन्धियों को पहचाना, जेवर आदि की चर्चा की तथा अनेक घटनायें बताई।

2. बदायूँ कचहरी के चपरासी, रमेश नाई के चार वर्षीय पुत्र अनिल ने अपने को पूर्व जन्म में तेजपाल मुख्तार का पुत्र बताया। अपनी मृत्यु के सम्बन्ध में उसका कहना है कि अब से चार वर्ष पूर्व जब वह 16 वर्ष का था तब अपने बड़े भाई की पत्नी को लिवाने के लिए रिक्शे में जा रहा था कि रास्ते में 337 नम्बर की मोटर से रिक्शा टकरा गया और उसकी मृत्यु हो गई। सहसवान ले जाने पर उसने पूर्व जन्म के चचेरे भाइयों तथा उनकी पत्नियों को पहचाना। बड़े भाई की जूते की दुकान पर बिना रास्ता पूछे वह चला गया और बताया कि वह स्वयं भी इस दुकान पर बैठा करता था।

3. रिसौली गाँव के सुन्दरलाल नामक एक डाक कर्मचारी की 7 वर्षीय पुत्री मीरा ने अपने को बदायूँ के सराफ सीताराम की पत्नी बताया जिसका स्वर्गवास 23 वर्ष पूर्व हुआ था। तीन वर्ष की आयु में ही लड़की ने पूर्व जन्म की घटनाएं बतानी शुरू की थी। जब लड़की को बदायूँ ले जाया गया तो वह उस मकान पर अड़ गई जहाँ उसकी मृत्यु हुई थी। यह मकान बेच दिया गया है और सीताराम जी दूसरे मकान में रहने लगे हैं, यह बताने पर ही लड़की आगे बढ़ी। उसने अपने बेटे और पोते को भी पहचाना तथा कृषि में घाटा आना, घोड़ा ताँगा रहने आदि का अनेक बातें बताई जो सही थीं।

4. सुनील दत्त नामक ने अपने को पूर्व जन्म का स्वर्गीय सेठ श्रीकृष्ण बताया, उसके अनेक प्रमाण दिये तथा यह भी बताया कि उसने धर्मशाला इंटर कालेज तथा रामलीला मैदान के फाटक निर्माण कराने में कितना दान स्वयं दिया और कितना दूसरों से दिलाया। उसने ग्रुप फोटो पहचान कर बताया।

राजस्थान के विश्व विद्यालय की परा मनोविज्ञान शाखा ने इस संदर्भ में कितनी घटनाएं संकलित की हैं जिनमें से कुछ का विवरण इस प्रकार है--

जयपुर के एक सरकारी कर्मचारी के 7 वर्षीय बालक मुकुल ने अपनी पूर्व जन्म की घटनायें बता कर लखनऊ मेडिकल कालेज का विद्यार्थी था। अपने भाई के साथ कार में जा रहा था तो कार के ट्रक से टकरा जाने के कारण उसकी मृत्यु हो गई। उसने यह भी बताया कि उसकी बहिन का नाम आशा-ग्वाले का गोविन्द और कुत्ते का टाँमी था, बच्चा छोटी आयु में ही कितनी ही बीमारियों के सम्बन्ध में जानकारी तथा दवाएं बताता था।

इस प्रकार अनेक घटनायें आये दिन देखने और सुनने में आती रहती हैं जिनसे पुनर्जन्म के सिद्धाँत की पुष्टि होती हैं। इस आत्मवादी मान्यता को बल इसलिए मिलना चाहिए कि इस जन्मों के किसी कारणवश कर्मों का फल न मिल पाये तो अगले जन्मों में फल की मान्यता के कारण दुष्कर्मों से भय और सत्कर्मों में उत्साह बना रहे।


पानी जैसी चंचलता से मनुष्य महान नहीं बनता ।

- बर्क



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