परिश्रम और पुरुषार्थ का मूल्य

February 1970

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भिखारी दिन भर भीख माँगता-माँगता शाम को एक सराय में पहुँचा और भीतर की कोठरी में भीख की झोली रखकर सो गया।

थोड़ी देर पीछे एक किसान आया उसके पास रुपयों की एक थैली थी। बैल लेने आया था। रात में वह भी उसी सराय में रुका, जहाँ भिखारी था और वह पोटली सिराहने रखकर सो गया।

भीख की झोली रुपयों की थैली से बोली ‘बहन! हम तुम एक बिरादरी हैं, इतनी दूर क्यों हैं, आओ हम तुम एक हो जायें?’

रुपयों की थैली ने हंसकर कहा- “बहन क्षमा करो, यदि मैं तुमसे मिल गई तो संसार में परिश्रम और पुरुषार्थ का मूल्य ही क्या रह जायेगा।”

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