गृहस्थ का अधिकार

February 1970

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आचार्य काम्भोज की सुपुत्री निश्चला प्रतिदिन इसी मार्ग से भगवती सरस्वती के दर्शनार्थ विभास-बन जाया करती थी। आर्य पुत्री ने व्याकरणाचार्य की शिक्षा प्राप्त की थी। नृत्य और संगीत में उन्होंने विशारद भी किया था। किन्तु इन सबसे बढ़कर वर्णनीय था, उनका शौर्य और साहस। कोई भी कुटिल व्यक्ति उनकी ओर ताक नहीं सकता था। उच्च शिक्षा के कारण जहाँ उनमें गंभीरता आ गई थी, साहस भी कम नहीं था उनमें। उन्होंने आर्यकुल में जन्म लेने का सौभाग्य सार्थक किया था।

आज जब ये देवी के दर्शन कर लौट रही थीं, सामने से आते हुए राजकुमार भूरिश्रवा की दृष्टि उन पर अटक गई। सौन्दर्य ईश्वर की शक्ति है पर जब उसे वासना की सामग्री समझ लिया जाता है तो उसी शक्ति की गरिमा नष्ट हो जाती है। परमात्मा के इस महत्तम स्वरूप की रक्षा के लिए, इसी कारण उन दिनों चरित्र को प्रधानता दी गई थी।

भूरिश्रवा का काम लोलुप दृष्टि डालना था कि निश्चला सिंहनी की भाँति गरज उठीं। दुष्ट, आर्यकुल में स्त्रियों को माता, भगिनी व पुत्री की दृष्टि से देखते हैं, तुझे मालूम नहीं, जिन जातियों में वासना जीवन का सुख और इष्ट मान लिया जाता है, उनकी सामर्थ्य नष्ट हो जाती है। तेरी इस धृष्टता का समाचार महाराज सिन्धुराज तक पहुँचेगा, तब पता चलेगा कि किसी कन्या को छेड़ने का क्या दण्ड हो सकता है।

किन्तु भद्रे! आपने यह कैसे सोच लिया कि मैं एक सामान्य नागरिक हूँ। आपको ज्ञात नहीं-मुझे राजकुमार भूरिश्रवा कहते हैं। सिन्धुराज मेरे पिता हैं, उन्हें मैं अपने लिए त्रासदायक क्यों समझूँ? आपके रूप-सौन्दर्य पर आसक्त हूँ। किन्तु व्यभिचार को मैं भी नीच और घृणित कृत्य मानता हूँ। दूसरे की कन्याओं पर कुदृष्टि डालने वाला मेरी दृष्टि में भी अपराधी है। मैंने तो आप पर इस उद्देश्य से दृष्टि डाली है कि आप जैसी विदुषी बाला को हम अपनी साम्राज्ञी बना सकते तो हम राज्य को यशस्वी राजकुमार प्रदान करने का श्रेय प्राप्त करते। भद्रे! आप असहमत न होंगी, जो युवक युवती समान, शारीरिक, मानसिक, आत्मिक, नैतिक योग्यता के आधार पर दाम्पत्य-वरण करते हैं, वे ही योग्य सन्तानों को जन्म दे सकते हैं।

निश्चला-विचारशील निश्चला को भूरिश्रवा की बातें बहुत तथ्यपूर्ण जान पड़ीं। उन्होंने एक क्षण विचार किया और फिर हंसकर बोली- ‘आपका कथन सत्य है महोदय! किन्तु हमारी योग्यतायें समान भी तो नहीं। आचार्य काम्भोज की पुत्री-मुझ निश्चला के पास न धन है, न द्रव्य और आप हैं प्रजा द्वारा अर्जित अपार सम्पत्ति के स्वामी। मेरे पिता परिश्रम की कमाई पर विश्वास करते हैं। मैंने आज तक सदैव ही ईमानदारी से उपार्जित धान्य ग्रहण किया है, तभी अपने मनोबल उद्दात्त रख सके हैं। आप हमारे साथ परिश्रम का जीवन जी सकें, ऐसा आपके लिये कहाँ संभव है?

भूरिश्रवा निश्चला के कथन से बड़े प्रभावित हुए। उन्होंने कहा-देवी। आपकी बात शिरोधार्य करता हूँ। राजकुमार भूरिश्रवा श्रम को ही प्रतिष्ठा देगा। अपनी आजीविका मैं आप उपार्जित करूंगा। जब तक अपनी यह परीक्षा उत्तीर्ण न कर लूँ, तब तक आपको प्रतीक्षा करनी पड़ेगी।

राजकुमार भूरिश्रवा उस दिन से कृषक भूरिश्रवा का सा जीवन जीने लगे, एक वर्ष तक बड़े परिश्रम का अभ्यास करने के बाद राजकुमार ने गृहस्थ का अधिकार प्राप्त किया। निश्चला ने तब भूरिश्रवा का पाणिग्रहण किया और सम्राट होकर भी अन्न केवल अपने परिश्रम से उपार्जित ग्रहण किया।

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