सच्चे इन्द्रियजित

February 1970

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एक बार एक पुण्यात्मा गृहस्थ के घर एक अतिथि आये। उसके शरीर पर सारे कपड़े काले थे। गृहस्थ ने तनिक खिन्नता से कहा- “तुमने काले कपड़े क्यों पहन रखे हैं?” “मेरे  क्रोधादि मित्रों की मृत्यु हो गई है। उन्हीं के शोक में ये काले वस्त्र धारण कर लिये हैं।” अतिथि ने उत्तर दिया।

गृहस्थ ने उक्त अथिति को घर से बाहर निकाल देने का आदेश दिया। नौकर ने तत्काल आज्ञा पालन की। थोड़ी देर बाद उन्होंने अतिथि को वापिस बुलाया और पास आते ही फिर निकाल देने की आज्ञा दी। इस प्रकार यह क्रम सात बार चलता रहा। किन्तु अतिथि तनिक भी खिन्न न हुये। अन्त में गृहस्थ ने अतिथि का सम्मान किया और अनुभव किया कि ये सच्चे इन्द्रियजित हैं।

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