स्वप्न कभी-कभी सत्य क्यों होते हैं

February 1970

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28 अगस्त 1883 की बात है। बोस्टन से छपने वाले दैनिक समाचार पत्र ‘बेस्टनाग्लोब’ के संवाददाता श्री एड सैमसन ने उस दिन काफी देर तक काम किया था। उसे कई दिन की थकावट थी सो रात पूरी तरह विश्राम करना चाहता था। प्रेस के चपरासी को उसने हिदायत दी- मुझे 3 बजे से पहले न जगाया जाये और यह कहकर वह अपने बिस्तर पर लेट सो गया।

उस रात उसने एक स्वप्न देखा - ‘महाभयंकर हृदय को कंपा देने वाली मानवीय इतिहास की एक जबर्दस्त दुर्घटना जिसने लोगों को यह सोचने के लिए विवश किया कि संसार में स्थूल हलचलें ही सब कुछ नहीं जो दिखाई नहीं देता, उस सूक्ष्म आकाश में भी ऐसी अनेक सूक्ष्म शक्तियाँ क्रियाशील हैं, जो मनुष्य की अपेक्षा अधिक संवेदनशील, शक्ति और सामर्थ्य से परिपूर्ण हैं। इस घटना ने ही एक छोटे से संवाददाता की प्रतिष्ठा सारे विश्व में फैला दी।

एड सैमसन ने देखा-एक भयंकर पहाड़-उससे लाल रंग का लावा फूट पड़ा, जिससे उस द्वीप में महाभयंकर विनाशलीला प्रारंभ हो गई। टापू अग्नि ज्वालाओं में बदल गया है। पृथ्वी काँप रही है और सब कुछ जलता हुआ स्वाहा होता जा रहा है। स्वप्नावस्था में ही उसने किसी से पूछा- ‘इस द्वीप का क्या नाम है’- ‘प्रालेप’ किसी ने स्वप्न में ही संदेश दिया और सैमसन की नींद टूट गई।

स्वप्न इतना वीभत्स था कि वह दृश्य सैमसन के मस्तिष्क में ज्यों के त्यों उभरे तब तक आँदोलन मचाते रहे, जब तक उसने पूरे स्वप्न को एक लेख के रूप में तैयार नहीं कर लिया। उसने सोचा यह था कि यह लेख किसी दिन समाचार में छापेंगे-इसलिए उस पर इम्पोर्टेन्ट (महत्वपूर्ण) की चिट लगाई और घर चला गया।

प्रातःकाल संपादक आया, उसने महत्वपूर्ण की चिट लगे इस समाचार को पढ़ा, उसे लगा, यह किसी संवाददाता का समाचार है सो ‘बोस्टेन-ग्लोब’ में मुख पृष्ठ पर प्रमुख समाचार के रूप में दोहरा शीर्षक देकर छाप दिया। 29 अगस्त को समाचार सारे संसार में फैल गया। जबकि संसार के और किसी भी अखबार में ऐसा कोई समाचार नहीं छपा था। दिन भर ‘बोस्टन ग्लोब’ कार्यालय से पूछताछ चलती रही। सम्पादक अपनी भूल के लिए स्वयं भी हैरान था।

मैक्सिको, आस्ट्रेलिया, अमेरिका से आकाश में गड़गड़ाहट, समुद्री तूफान, भू-कम्पनों के संक्षिप्त समाचार तो मिले पर उतने से सम्पादक और पाठकों में से किसी की जिज्ञासाओं का समाधान न हुआ। आखिर सम्पादक को सारी घटना का भूल सुधार छापना पड़ा।

सचमुच जिस समय युवक संवाददाता एड सैमसन यह स्वप्न देख रहा था, पृथ्वी के दूसरे छोर पर ‘क्राकातोआ’ द्वीप पर भयंकर भूकंप और तूफान आया था। इस भयंकर ज्वालामुखी के कारण संपूर्ण द्वीप समुद्र के गर्त में ऐसे समा गया था, जैसे विशाल घड़ियाल की दाढ़ में मानव अस्थि पिंजर, घटना की पुष्टि कई दिन बाद उधर से लौटने वाले जहाजों ने की। तब फिर ‘भूल सुधार का भूल सुधार’ छापा गया। सैमसन के बड़े-बड़े फोटो समाचार पत्रों में छपे।

इस स्वप्न की गहरी छान-बीन की गई तो कई ऐसे सूक्ष्म रहस्यों का पता चला जो मनुष्य के लिए अकारण कभी संभव ही नहीं हो सकते थे। लोगों ने अनुभव किया वस्तुतः कोई शाश्वत और साक्षी सत्ता है, जिससे संबंध जोड़ने या अनायास जुड़ जाने से ऐसी विलक्षण अनुभूतियाँ हो सकती हैं। पहले लोगों को इस द्वीप के प्रालेप नाम पर टिप्पणी करने का अवसर मिला अवश्य पर पीछे कई दस्तावेजों से यह रहस्य प्रकट हुआ कि डेढ़ सौ वर्ष पूर्व ‘क्राकातोआ’ का नाम ‘प्राले’ ही था।

मानवीय इतिहास में संकलित किये जायें तो इस तरह के पूर्वाभास वाले स्वप्नों के समाचारों से एक दो नहीं हजारों लाखों पुस्तकें लिखी जा सकती हैं, जिनसे यह पता चल सकता है कि स्वप्न वस्तुतः एक विलक्षण विज्ञान और किसी महान आत्मिक सत्य के प्रमाण हैं। पर आज तक यह गुत्थी कोई भी वैज्ञानिक या मनोवैज्ञानिक सुलझा नहीं सका कि आखिर स्वप्नों के सत्य होने का रहस्य क्या है।

भारतीय तत्व-दर्शन में इस संबंध में गूढ़ व्याख्यायें हैं, उनसे नई शोध और उपलब्धियों के भाग भी निकलते हैं। इसकी प्रमाणिकता को कसौटी पर कस कर देखा भी जा सकता है।

भारतीय योगी और तत्वदर्शी आचार्यों के मतानुसार आत्मा और सूर्य में सादृश्यता है। अर्थात् हमारी आत्मा या सूर्य दोनों एक ही हैं। मन शरीर का प्रतिनिधि और आत्मा का अध्ययन करने वाला, जब निद्रावस्था में सुषुम्ना प्रवाह (इसे जीवन रेखा भी कहते हैं) में घूमता है, तब उसका संबंध शरीर की समस्त नस, नाड़ियों, 33 अस्थि खण्डों से जुड़ जाता है। योग द्वारा देखा गया है कि मेरुदण्ड के पोले भाग में सुषुम्ना के भीतर अनेक परतों में छिपे हुए अनेक सूक्ष्म जगत हैं, जिनका संबंध आकाश की दिव्य शक्तियों से है।

सामान्य अवस्था में दूषित आहार-विहार के कारण मन भी दूषित होता है, इसलिए निद्रावस्था में मन जीवन देखा पर भ्रमण करते हुए भी सूक्ष्म लोकों में अंधकार ही देखता है। पर जिनके मन शुद्ध होते अर्थात् उनमें काम, क्रोध, मोह, क्षोभ, प्रतिशोध आदि विकार नहीं होते, उन्हें जीवन रेखा पर चलते हुए अनेक दृश्य ऐसे दिखाई देते हैं, जिनका संबंध हमारे निजी जीवन या पृथ्वी के किसी भी भाग से संबंधित हो सकता है। कई बार प्रकाश चंद्रमा या सूर्य के बिम्ब की अनुभूति होती है, यह आत्मा के साथ आँशिक साक्षात्कार होता है। इस स्थिति के स्वप्न प्रायः बहुत ही स्पष्ट और सत्य होते हैं।

बाइबिल के पंडित पैरासेल्सस ने भी ऐसी ही व्याख्या की है। उन्होंने लिखा है-सूर्य भूमध्य रेखा को पार करता है, 21 मार्च एवं 21 सितंबर को वह एक्वेरियस में गिरता है। यहाँ से चन्द्रमा (लियो) का क्षेत्र प्रारंभ होता है। चन्द्रमा की सूक्ष्म शक्तियों का संबंध हृदय से है। यदि मनुष्य का मन शुद्ध है, अन्तर्मुखी है तो स्वप्नावस्था में मनुष्य को इसी गति का बोध होता है। अर्थात् मनुष्य की निद्रावस्था सूर्य की दूसरी कक्षा में परिचालन में जो कि अधिक विराट अंतरिक्ष को प्रभावित करती है, अपनी अनुभूति होती है। वह मन द्वारा चन्द्रमा के प्रकाश या तत्व के कारण होती है।

उस अवस्था में सूर्य का सूक्ष्म प्रकाश अपनी पृथ्वी के अयन-मंडल (आयनोस्फियर) को भी प्रभावित करता रहता है, इसलिए हमारे बहुतायत स्वप्न पृथ्वी की परिधि के भी होते हैं, किन्तु उस समय चेतना अपने शाश्वत स्वरूप में होती है, इसलिए वह अनुभूतियाँ जागृत अनुभवों से भिन्न प्रकृति की होती हैं। जब हमारी आत्मा इतनी पवित्र होती है कि उसमें सूर्य के प्रकाश जैसी पवित्रता आ जाती है तो हमारे स्वप्न बहुत स्पष्ट, ऊर्ध्वमुखी, आशयपूर्ण और सुखदायक होते हैं, गायत्री उपासकों के स्वप्न इसीलिए बहुत सार्थक, स्पष्ट और भविष्य का ज्ञान कराने वाले होते हैं, क्योंकि वे सूर्य की अदृश्य शक्ति-धाराओं से प्रभावित होते हैं, गायत्री उपासक ही नहीं, जिनकी आत्माएं गुण, कर्म, स्वभाव से जितनी अधिक पवित्र होंगी, उन्हें उतनी ही स्पष्ट अनुभूतियाँ होंगी, वे भले ही किसी देश, प्राँत या काल के निवासी हों।

जैसा कि ऊपर बताया जा चुका है, स्वप्नावस्था सूर्य की विपरीत स्थिति में अनुगमन का ही परिणाम होती है, इसलिए सूर्य चेतना की तरह ही स्वप्न चेतना स्पष्ट और प्रकाशपूर्ण होती है। अर्थात् उस समय हम सूर्य-शक्ति के आँशिक साक्षात्कार में डूबे हुए होते हैं, कई बार स्वप्न में सूर्य या चन्द्रमा के बिम्ब स्पष्ट प्रकट होते हैं, वह क्षणिक आत्म बोध की अनुभूतियाँ होती हैं, सिद्धि का स्वरूप उसी का अपरिवर्तित रूप कहा जा सकता है और इसीलिए कहा जाता है कि योगी कभी सोता नहीं- या निशा सर्वभूतानां तस्यामि जागर्तिसंयमी।’ योग सिद्ध पुरुष स्वप्न अवस्था में भी पृथ्वी के उस भाग में जहाँ सूर्य रहता है, अपने सूक्ष्म शरीर में रहता है और सूर्य प्रकृति के साथ उसका तादात्म्य होता है, सूर्य की चेतना सर्वदा एक-सी रहती है, इसलिए उस योगी की चेतना भी काम करती रहती है। अर्थात् वह उस अवस्था में किसी को स्थूल संदेश प्राण या प्रकाश दे सकता है। दो पवित्र आत्माओं की भेंट से दूर-दर्शन, दूर-श्रवण भी इसी सिद्धाँत का फलित है।

यह पूछा जा सकता है कि जीव चेतना की आत्मचेतना में परिणित किस प्रकार होती है। यह जानने के लिए हमें सुषुम्ना शीर्षक के अंदर होने वाले प्राण प्रवाह और उसके सात केन्द्रों का अध्ययन करना पड़ेगा। इसी सूक्ष्म संस्थान में ब्रह्मांड को बीज रूप में उतारा गया है और वह अदृश्य केन्द्र बनाए गये हैं, जो सूर्य, चन्द्रमा, पृथ्वी आदि लोगों से संबंध रखते हैं। स्वप्नावस्था में वैज्ञानिक भाषा से, अवचेतन मन सुषुम्ना शीर्षक में प्रवेश करता है। जिसे एक्वेरियन कहते हैं और जिस पर सूर्य शक्ति का परिभ्रमण होता है, वह इसी सुषुम्ना की ही सूक्ष्म-शक्ति धारा है। सिम्पेथेटिक मस्तिष्क प्रणाली की नसें भी-ग्रन्थियों की दो जंजीरों की तरह रीढ़ की हड्डी के दोनों तरफ होती हैं और उसमें से नसों के रेशे दिल, पेट, आँतों एवं अन्य मुख्य अंगों तक जाते हैं। मस्तिष्क कोष से संबंधित रिफलेक्स आर्क जो नस रेशों से संबंधित रहता है, बिना मस्तिष्क को समाचार पहुँचाये ही सुषुम्ना द्वारा माँसपेशियों के वातावरण के अनुकूल हरकत कराता रहता है, इसलिए मूल चेतना से संबंध विच्छेद हो जाने पर भी मनुष्य शरीर जीवित बना रहता है और उतने समय में वह चेतना सुषुम्ना के भीतर पोले भाग में परिभ्रमण करती हुई उन शक्ति-केन्द्रों के अनुभव और तन्मात्रायें ग्रहण करती रहती है।

विज्ञान ने अब तक रीढ़ से लेकर दुम तक ऐसी 49 ग्रन्थियों की जानकारी प्राप्त की है और यह स्वीकार किया है कि उनमें से 7 का विशेष महत्व है और उनसे दिव्य गंधों, दिव्य शब्दों एवं दिव्य प्रकाशों, जैसे सूक्ष्म तत्वों की अनुभूतियाँ मनुष्य को हो सकती हैं इतना मानकर भी वैज्ञानिक यह नहीं जान पाये हैं कि यह शक्ति-केन्द्र क्या वस्तुतः तात्विक रूप से किन्हीं आकाशीय नक्षत्रों से संबंध रखते हैं, इसे योगियों ने ध्यान नेत्रों से देखा और पहचाना कि यह शक्ति धारायें अस्थि खण्डों के तैंतीस सूत्रों में और शरीर की 72 हजार नाड़ियों में किस प्रकार प्रवाहित होकर चेतना को मूल ब्रह्मांड से जोड़ती हैं। इस समय मस्तिष्क की तिल्ली से अदृश्य नक्षत्रों की शक्तियाँ शरीर में खिंची चली आतीं और गुलाब के फूल की सुगन्ध की तरह शरीर में फैलती रहती हैं, इस अवस्था में अपने भीतर से भी संदेश प्रकाश और भावनाएं औरों को प्रेषित की जा सकती हैं पर यह सब मानसिक शक्तियों के नियंत्रण और आत्मिक शुद्धता पर निर्भर है।

स्वप्न इन्द्रियातीत अनुभूतियाँ होती हैं, यह अनुभूतियाँ उतनी ही सत्य और स्पष्ट हो सकती हैं, जितना शुद्ध और अन्तर्मुखी हमारा अन्तःकरण हो। एलियस होवे जिस दिन अपनी असफलता पर दुखी हुआ था, उसे स्वप्न में सिलाई की मशीन का ज्ञान मिला था। सर ई.ए. वालिस बज प्राचीनतम प्राच्य भाषाओं के विद्वान हो गये हैं, उनका हृदय बड़ा शुद्ध था। उन्हें एसीरियन और एक्वेडियन भाषाओं के कठिन प्रश्न-पत्र स्वप्न में ही सूझ गए थे। कई बार दुष्ट और दुराचारी लोगों को भयंकर स्वप्न दिखाई दिये हैं पर वह उन्हें आत्म-शक्ति के द्वारा चेतावनी जैसे रहे हैं, जिनसे अनेक लोगों को अपनी जीवन दिशाएं बदलते देखा गया है। अपनी वृत्तियों को शुद्ध बनाकर प्रकाशमय बनाकर सरल और संवेदनशील बनाकर हम भी इस ईश्वरीय शक्ति का अपने जीवन में महत्वपूर्ण उपभोग कर सकते हैं।


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