ऊर्ध्वगामी मन की सामर्थ्य

February 1970

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मैस्मरेजम के आविष्कर्ता डॉ. मैस्मर ने लिखा है- ‘मन को यदि संसार के पदार्थों और तुच्छ इन्द्रिय भागों में उठाकर ऊर्ध्वगामी बनाया जा सके तो वह ऐसी विलक्षण शक्ति और सामर्थ्यों से परिपूर्ण हो सकता है, जो साधारण लोगों के लिए चमत्कार सी जान पड़े। मन आकाश (स्पैश) में भ्रमण कर सकता है और उन घटनाओं को ग्रहण करने में समर्थ हो सकता है, जिन्हें हमारी ज्ञानेन्द्रियाँ ग्रहण न कर सकें और हमारा तर्क जिन्हें व्यक्त करने में असमर्थ हो।’

अमेरिका के प्रसिद्ध विद्वान डॉ. जे. बी. राइन ने भी उक्त तथ्य की बाद में विस्तृत खोज की और पाया कि विचार, चिंतन और किसी भी अभ्यास द्वारा यदि मन की विचारणाओं के सामान्य धरातल से ऊपर उठाकर आकाश में घुमाया जा सके तो वह भूत और भविष्य की अनेक घटनाओं को बेतार के तार के संदेश की तरह प्राप्त कर सकता है। न्यू फ्रंटियर्स आफ माइंड’ नामक पुस्तक में उन्होंने ऐसी अनेक घटनाओं का विवरण भी दिया है, जो उक्त कथन की सत्यता प्रतिपादित करती हैं।

‘अनुभव से अभ्यास तक’ (फ्राम एक्पीरियेन्स टु एक्सपेरीमेन्ट्स) नाम प्रथम अध्याय में पश्चिमी राज्य के एक बैंकर का महत्वपूर्ण प्रसंग उन्होंने इस प्रकार दिया है-

बैंकर एक अध्ययनशील धार्मिक मनोवृत्ति का व्यक्ति था। ईश्वर चिन्तन के लिए वह प्रतिदिन कुछ समय निकालता। एक दिन शाम आठ बजे उसे एकाएक ऐसा लगा कि ‘विला कैथर्स’ की पुस्तक ‘डेथ कम्स फॉर दि आर्कविशप’ पुस्तक पढ़नी चाहिए। इसके प्रसंग पाठक की अन्तर्वेदना का स्पर्श करते हैं। यह उपन्यास बैंकर पहले भी पढ़ चुका था। फिर अकारण वही पुस्तक दुबारा पढ़ने का मन क्यों हुआ-यह उसकी समझ में नहीं आया। तो भी उसने पुस्तक निकाली और उसे पढ़ने में तल्लीन हो गया।

आर्क विशप की मृत्यु का विवरण इस उपन्यास में बहुत ही कारुणिक है। उसे पढ़ते-पढ़ते बैंकर का हृदय आर्द्र होता गया। आँखों से आँसू झरने लगे। संवेदना के एकाकार में भगवान जाने क्या विज्ञान है, मनुष्य दूसरे के दुख को अपना दुख जैसा समझने लगता है। आत्म-चेतना के विकास की भारतीय आध्यात्मिक और योग प्रणाली लगता है, उसी का विकसित रूप है, जब व्यक्ति, व्यक्ति न रहकर अपने को समष्टिगत अनुभव करने लगता है।

बैंकर जी भर के रो लिया, तब जी हलका हुआ। तभी एकाएक उसे ध्यान आया, एक बार जब उसकी माँ की मृत्यु हुई थी, तब यह उपन्यास पढ़ा था और इसी प्रकार रोया था, कहीं ऐसा तो नहीं यह अकारण वेदना पिता की मृत्यु का संदेश या अनुभूति हो। आशंका विश्वास में बदलती गई। रात भर वह इसी चिंता में डूबा रहा।

प्रातः बोर्ड आफ डाइरेक्टर्स की मीटिंग थी। बैंकर ने उस मीटिंग को अपना शाम का अनुभव सुनाया। डाइरेक्टरों ने सत्य जानने की जिज्ञासा से वहीं पत्र लिखाया। उसका उत्तर चौथे, पाँचवे दिन आया तो सभी आश्चर्यचकित थे कि ठीक उसी दिन उसी समय सवा आठ बजे सचमुच उसके पिता की मृत्यु हो गई थी।

हमारे यहाँ जप और उर्ध्वगामी चिन्तन का उद्देश्य वैज्ञानिक मन को विकसित करना ही रहा है। उसके द्वारा अनेक अज्ञात बातें साधक को सिनेमा के पर्दे की भाँति मालूम हो जाती हैं। पर उस विज्ञान को आज लोग भूलते जा रहे हैं। जब से हमारे भीतर भरा आकाश तत्व शुद्ध होता है और ऐसी अनेक अनुभूतियों का द्वार खुलता है, जिसका संकेत डॉ. मैस्मर ने किया और इस घटना द्वारा पुष्टि डॉ. राइन ने की।

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