समाज भी एक परिवार है। वैयक्तिक परिवार छोटा और सामाजिक परिवार बड़ा है। जैसे जब किसी परिवार में कोई विवाह आदि उत्सव होता है, तब बाहर से नाते-रिश्तेदार आकर परिवार की परिधि को बढ़ा देते हैं। सारे परिवार के लोग उनको परिवार का एक विशेष अंग समझते हैं और आये हुए लोग भी परिवार को अपना ही परिवार मानते हैं। उसी प्रकार यदि जीवन के प्रत्येक क्षण को एक सुँदर अवसर समझकर मनुष्य अन्य सामाजिक सदस्यों को आया हुआ बन्धु समझे तो पूरे समाज में सहयोग और सद्भावना की स्थिति आते देर न लगे।
मनुष्य को एक सीमित और अनजान अवधि का जीवन रूपी अवसर मिला है, जिसे उसे सुँदर से सुँदर ढंग से बिताना चाहिए। इसे उलझन और अशाँति में व्यतीत करना मानवता नहीं है। हर व्यक्ति को अच्छे से अच्छा जीवन बिताने में सहायता देता हुआ स्वयं भी अच्छे ढंग से जिये, तभी मानव जीवन का उद्देश्य सफल और संसार की सृष्टि का मंतव्य पूरा होगा, अन्यथा नहीं।
-लियो टॉलस्टाय
----***----