विज्ञान और यंत्रीकरण कितने पीड़ा-जनक

February 1970

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अमेरिका, इंग्लैण्ड, कनाडा आदि देशों में विज्ञान लोगों के रोंये-रोंये में बस गया है। हमारी गतिविधियाँ उनके अन्धानुकरण की हैं। हम चाहते हैं कि भारतवर्ष भी पाश्चात्य देशों का अनुकरण करे और यंत्रीकरण को बढ़ावा दे ताकि देश में खुशहाली बढ़े। पर ऐसा सोचते समय हम वहाँ के जीवन में यंत्रीकरण के फलितार्थ की बात भूल जाते हैं। यदि उसे भी समानांतर वर्णन कर दिया जाता तो हम अनुभव करते हैं कि हमारे लिए यंत्रीकरण उतने उपयोगी नहीं हैं, जितना आज-कल महत्व दिया जा रहा है।

प्रोफेसर हार्वर्ड डिंगले जो लंदन विश्व विद्यालय के एक प्रख्यात खगोल पिण्डों के भौतिकीय एवं रासायनिक विज्ञान के ज्ञाता (एस्ट्रोफिजिस्ट) तथा दर्शन-शास्त्र एवं विज्ञान के इतिहास के भी ज्ञाता थे-उनका कथन है कि जब हम उस विज्ञान की प्रकृति के बारे में विचारते हैं, जो आज-कल प्रचलित है एवं जिसका उपयोग आज-कल हो रहा है, हम ऐसी परिस्थितियाँ पाएंगे, जिनसे भगवान के दूत भी रोने लगें। यह ऐसा युग नहीं है कि आँख मीच कर विज्ञान की शक्ति को महत्व दिया जाय। विज्ञान की सत्यता का ही ध्यान दिया जाय और आध्यात्मिक सत्यों को पूर्ण रूपेण भुला दिया जाय तो उसके वही परिणाम हो सकते हैं जो आज अमेरिका इंग्लैंड में दिखाई दे रहे हैं। जो सुखद नहीं है।

अमेरिका का आकाश कभी अवकाश नहीं पाता। वहाँ हर क्षण कम से कम एक हजार जहाज आकाश में केवल पहरेदारी के लिए गड़गड़ाते घूमा करते हैं। पहरेदारी की चिन्ता भयग्रस्तों को होती है। अमेरिका जैसा भयभीत कोई दूसरा देश नहीं, यह विज्ञान की देन है।

हवाई जहाजों के अतिरिक्त वहाँ हजारों कारखाने, मोटरें, मशीनें चौबीस घण्टे चलते रहते हैं, उससे वातावरण में गन्दी गैसें छाई रहती हैं, शोर इतना होता है कि एक शहर में जितना शोर होता है, यदि उसे विद्युत शक्ति से बदल दिया जाय तो सारे शहर के उपभोग की आवश्यकता को पूरा करके भी बहुत-सी विद्युत शेष बच जायेगी।

गंदी गैसों के कारण वहाँ नई-नई तरह की बीमारियां फैलती जा रही हैं, कुछ बीमारियाँ ऐसी हैं, जो केवल अमेरिका में ही पाई जाती हैं, उनके उपचार के लिए उसे निरन्तर नई-नई औषधियों की खोज में लगे रहना पड़ता है। तीन चौथाई विज्ञान वहाँ एक चौथाई विज्ञान के दुष्परिणामों की रोकथाम भर के लिए है। होता उल्टा है, विज्ञान जितना बढ़ता है, वहाँ की समस्यायें उतनी ही जटिल होती जा रही हैं। वहाँ के मूर्धन्य मनीषी आइन्स्टीन तक को इसीलिए कहना पड़ा था- विज्ञान की प्रगति के साथ धर्म की प्रगति न हुई तो संसार अपनी इस भूल के भयंकर दुष्परिणाम आप ही भुगतेगा।

चौबीस घंटे शोर के कारण वहाँ 70 प्रतिशत लोगों के मस्तिष्क खराब हैं। आत्म-हत्यायें और हत्यायें सबसे अधिक अमेरिका में होती हैं, 70 प्रतिशत अमेरिकन नींद की गोलियाँ लेकर सोते हैं, अन्यथा उनके मस्तिष्क इतने अशाँत हैं कि उन्हें स्वाभाविक नींद लेना भी कठिन हो जाता है। दाम्पत्य जीवन जितना अमेरिका और इंग्लैण्ड में क्लेशपूर्ण है, उतना संसार के किसी भी भाग में नहीं। अमेरिका में एक कहावत प्रचलित है, रात को विवाह प्रातः संबंध-विच्छेद इंग्लैंड में कोई स्त्री “मैं तुम्हें तलाक देती हूँ।” तीन बार कह दे तो उन्हें कानूनन तलाक की अनुमति मिल जाती है। यह घटनायें बताती हैं कि विज्ञान और यन्त्रीकरण की प्रगति वाले इन देशों का आन्तरिक जीवन कितना खोखला कष्टपूर्ण और विभ्रान्त है।

आकाश तत्व का मानव जीवन पर प्रभाव और उसकी शुद्धि जैसे महत्वपूर्ण भारतीय धर्म विज्ञान को भुला दिया गया अपनी साँस्कृतिक सिद्धियों को ठुकराकर विज्ञान और यंत्रीकरण के मामले में पाश्चात्यों का अंधानुकरण किया गया तो कालान्तर में भारतवर्ष भी ऐसा ही दूसरा अमेरिका बन सकता है।

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