अध्ययन के लिए जितनी भी एन्जिलर पकड़ी गई, नर उनमें से एक भी न निकला। जिस तरह भारतीयों में धर्म और भावनाशीलता का अधिकाँश भाग स्त्रियों में ही दिखाई देता है, एन्जिलर में नर एक भी न मिलना वैसे ही कौतूहल-वर्द्धक था।
एक दिन एक मछली विशेषज्ञ ने निश्चय किया कि इस मछली के अंग-प्रत्यंगों की जानकारी प्राप्त करनी चाहिए। मानवीय बुद्धि में एक बड़ा दोष है कि वह स्थूल और दिखाई पड़ने वाली वस्तुओं के बारे में ही अधिकाँश सोचता और उन्हें प्राप्त करने का प्रयत्न करता है, जबकि आकाश में ईश्वर के समान विश्व में अनेक अदृश्य सूक्ष्म तत्व भरे पड़े हैं, जिनकी जानकारी मिल जाये तो आज का व्यक्ति भी ऋषियों-महर्षियों जैसी समर्थता का स्वामी बन जाये। हमारी अंतरंग में ही ऐसी शक्तियों के भाण्डागार छिपे पड़े हैं पर हम शरीर को अनेक वैज्ञानिकों की तरह ऊपर-ऊपर देखकर, पढ़कर थोड़ी-सी जानकारी प्राप्त कर छोड़ देते हैं।
विशेष और महत्वपूर्ण जानकारी तब मिली जब इन विशेषज्ञ महोदय ने देखा एन्जिलर मादा के सिर के ऊपर सीधी आँख पर एक बहुत ही छोटा-सा मछली जैसा जीव चिपका हुआ है। इस जीव का अध्ययन करने से पता चला यही वह सज्जन हैं, जिनकी वैज्ञानिकों को तलाश थी। नर एन्जिलर, यही था, बेचारी मादा के सिर पर चिपका उसी के रक्त को चूसने वाला। पति या शैतान से भी बढ़कर।
मादा का आकार 40 इंच, भगवान ने अच्छा किया कि पतिदेव को कुल चार ही इंच का बनाकर यह दिखाया कि नारी को मात्र प्रजनन और शोषण की सामग्री बनाने वालों का बौना होना ही ठीक है। मनुष्य के इतिहास में भी यही पाया जाता है। संसार के जो भी देश आज प्रगति के शिखर पर पहुँचे हैं, उन सबमें नारी के उत्थान के लिए बड़े कदम उठाये गये हैं। हम भारतवासी हैं, जिन्होंने नारी को दासी, पर्दे में रहने वाली, शिक्षा-शून्य बनाया, उसका रमणी के रूप में उपभोग किया। तभी तो प्रगति में एन्जिलर नर की तरह बौने रह गये।
हम में यह दोष कहाँ से आया इसका उत्तर भी एन्जिलर मछली के अध्ययन करने वाले वैज्ञानिकों ने दिया। उन्होंने नर के स्वभाव का अध्ययन करके बताया कि उसकी यह शोषण प्रियता उसकी आलसी और वासनापूर्ण प्रकृति के कारण है। जीवन में मधुरता के लिए कोई स्थान न होने के कारण वह अपनी ही पत्नी का खून पिया करता है।
देखने में एन्जिलर नर पापी और अपराधी कहा जा सकता है पर जिन लोगों ने नारी का मूल्यांकन दहेज से किया, पर्दे और अशिक्षा से किया, उन्हें क्या माना और क्या कहा जाय इसका निर्णय तो हमें अपने भीतर मुख डालकर करना पड़ेगा?
=कोटेशन======================
गुलाब! मधुमक्खी बोली- “तुम जानते हो कि एक-एक करके तुम्हारे सब पुष्प तोड़ लिये जाते हैं, फिर भी तुम पुष्प उत्पन्न करना बंद क्यों नहीं करते?” गुलाब ने हंसकर कहा- “देवी! मनुष्य क्या करता है, यह देखकर संसार को सुँदर बनाने के कर्त्तव्य से मैं क्यों गिरूं?”
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