काँचनी नरेश की राजकुमारी प्रेत बाधा से पीड़ित हुई। भूत सामान्य नहीं, ब्रह्म राक्षस था। तब श्री रामानुजाचार्य बुलाये गये। उन्होंने वहाँ जाकर पूछा- “आपको यह योनि क्यों कर मिली।” रोकर ब्रह्मराक्षस बोला- “मैं विद्वान था, किन्तु मैंने अपनी विद्या छिपा रखी। किसी को भी मैंने विद्या दान नहीं किया, इससे ब्रह्म-राक्षस हुआ। आप समर्थ हैं, मुझे इस प्रेतत्व से मुक्ति दिलाइये।” श्री रामानुज ने राजकुमारी के मस्तक पर हाथ रखकर जैसे ही भगवान का स्मरण किया, वैसे ही ब्रह्मराक्षस ने उसे छोड़ दिया, क्योंकि वह स्वयं प्रेतयोनि से मुक्त हो गया। उस दिन से श्री रामानुज ने प्रतिज्ञा कि वह भी स्वाध्याय का लाभ अपने समाज को भी देते रहेंगे।