संगठित हूजिए-एक रहिए

April 1948

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मनुष्य प्राणी आज सृष्टि का मुकुटमणि है। उसने अनेक दिशाओं में आश्चर्यजनक उन्नतियाँ की हैं। साधारण श्रेणी के पशु से ऊपर उठकर वह उन्नति के उच्च शिखर पर जा बैठा है। इस उन्नति का मूलभूत कारण उसकी एकता शक्ति, मिलन शक्ति, सामाजिकता, मैत्री भावना, सहयोग परायणता ही है। मनुष्यों ने आपस में एक दूसरे को सहयोग दिया, अपनी स्थूल और सूक्ष्म शक्तियों को आपस में मिलाया इस मिलन से ऐसी ऐसी चेतनाएं, सुविधाएं उत्पन्न हुईं जिनके कारण उसके उत्कर्ष का मार्ग दिन दिन बढ़ता गया। दूसरे प्राणी जो साधारणतः शारीरिक दृष्टि से मनुष्य की अपेक्षा कहीं अधिक सक्षम थे, इस मैत्री भावना, सम्मिलन योग्यता के अभाव में जहाँ के तहाँ पड़े रहे, वे अति प्राचीनकाल में जैसे थे वैसे ही अब भी बने हुए हैं। मनुष्य की तरह उन्नति का सुविस्तृत क्षेत्र वे प्राप्त न कर सके। संघ शक्ति भी एक महान् शक्ति है उसे भले या बुरे जिस भी माँग में जिस भी मार्ग में जिस भी कार्य में लगाया जायगा उधर ही आश्चर्यजनक सफलता के दर्शन होंगे।

मनुष्यों में भी अनेक देश, जाति, वर्ग, समूह हैं। उनमें वे ही आगे बढ़े हैं, वे ही समुखत हुए हैं जिनमें अपेक्षाकृत अधिक सहयोग भावना है। व्यक्तिगत रूप से विचार किया जाय तो भी हमें वे ही व्यक्ति समृद्ध मिलेंगे जिन्होंने किसी भी उपाय से दूसरों का अधिक सहयोग प्राप्त किया है। कोई भी सेठ साहूकार बिना मुनीम, गुमास्ते कारचरदार, कारीगर, मजदूर, एजेन्ट आदि के सहयोग के बिना समृद्धिशाली नहीं हो सकता। चोर, उचक्के, ठग, डाकू, लुटेरे, जुआरी, आदि को जो सफलताएं मिलती हैं। उसमें उनके दल की संघशक्ति ही प्रधान कार्य करती है। गुप्त षड्यंत्रों के द्वारा रोमाँचकारी काण्ड होने की घटनाएं सामने आती हैं। उनके साहसिक कार्यों को देखकर सन्न रह जाना पड़ता है। इन विचित्र कारगुजारियोँ के अन्दर षड्यंत्रकारियों का संगठन ही होता है। इस संगठन के कारण वे अलभ्य साधनों को पर्याप्त मात्रा में जुटा लेते हैं। कुछ समय पूर्व के भारतीय क्रान्तिकारियों के साहसिक षड्यंत्र और इन दिनों संप्रदायवादियों द्वारा आयोजित सीधी कार्यवाही के काण्ड यह बताते हैं कि चंद मनुष्यों का घनिष्ठ सहयोग कैसे कैसे परिणाम उत्पन्न कर सकता है।

बुरे लोगों द्वारा, बुरे कार्य के लिए, आपसी घनिष्ठ संघ बनाकर अवाँछनीय साहसिक कार्य होते हुए हम अपने चारों ओर नित्य ही देखा करते हैं, उन उदाहरणों की कमी नहीं। पर साथ ही यह भी तथ्य सामने है कि श्रेष्ठ लोगों ने श्रेष्ठ कार्यों से बड़ी बड़ी महान् सफलताएं आपसी संगठन के कारण प्राप्त की हैं। बिजली, अग्नि, गैस, भाप की तरह जनशक्ति भी अनेक गुनी बढ़ जाती है। व्यक्तिवाद के स्थान पर समूहवाद की प्रतिष्ठापना का महत्व अब समस्त संसार पहचानता जा रहा है। प्रथक प्रथक रूप से छोटे छोटे प्रयत्न करने में शक्ति का अपव्यय अधिक और काम कम होता है। परंतु सामूहिक सहयोग से ऐसी अनेकों चेतनाओं और सुविधाओं की उत्पत्ति होती है जिसके द्वारा बड़े बड़े कठिन कार्य सरल हो जाते हैं। सम्मिलित खेत, सम्मिलित रसोई, सम्मिलित व्यापार, सम्मिलित संस्था आदि अनेकों दिशाओं में सम्मिलन का क्षेत्र विस्तीर्ण हो रहा है। इस प्रवृत्ति की वृद्धि के साथ साथ मानव प्राणी की सुख शान्ति एवं सफलताओं में भी आश्चर्यजनक रीति से अभिवृद्धि होगी।


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