बोलने का शऊर सीखिये

April 1948

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(श्री राजेश जी)

मनुष्य के विचारों की थाह, योग्यता का परिचय और विद्या, बुद्धि तथा स्वभाव का पता उसकी बातों से मिलता है, इसलिए उसे अपने विचारों को प्रकट करने के लिए बात चीत में बहुत सावधानी से काम लेना चाहिये। बोलचाल में सावधानी की आवश्यकता इसलिए भी है कि प्रायः कभी कभी सम्भावना की असावधानी के कारण ही क्रोध चढ़ जाता है। वास्तव में किसी कार्य की सफलता और असफलता उसके सम्बन्ध में कही जाने वाली बातचीत के ढंग पर ही निर्भर होती है। जो सभ्यता और शिष्टाचार पूर्वक बात करना नहीं जानता, लोग उससे बातें करना नहीं चाहते।

बोलते समय सुनने वाले की हैसियत (पद) के अनुसार ‘तुम’, ‘आप’ अथवा ‘श्रीमान’ आदि शब्दों का उपयोग करना चाहिये। ‘तुम’ का प्रयोग अत्यन्त साधारण स्थिति के लोगों के लिये और ‘श्रीमान्’ का उपयोग अत्यन्त प्रतिष्ठित सज्जनों के लिए किया जाना चाहिये। ‘आप’ शब्द इतना व्यापक है कि उसका उपयोग दोनों ही कोटि के लोगों के लिये किया जा सकता है। बहुत ही छोटे लड़कों के अतिरिक्त ‘तू’ का प्रयोग और किसी के लिये नहीं करना चाहिए।

किसी के प्रश्न के उत्तर में ‘हाँ’ या नहीं के लिये केवल सिर हिलाना असभ्यता का चिह्न है। सभ्यता और शिष्टाचार के नाते इस प्रकार के उत्तर ‘जी हाँ या जी नहीं’ आदि शब्दों में दिये जाने चाहिए। इस प्रकार रुक रुक कर बातचीत न की जाये कि लोग सुनते सुनते ऊब जायें। बहुत देर तक केवल अपनी ही बात नहीं कहते रहना चाहिए। जहाँ तक सम्भव हो बातचीत सम्भाषण के रूप में चलनी चाहिए, जिससे दूसरों को भी बोलने का अवसर मिलता रहे और श्रोता और वक्ता का अनुराग सम्भाषण के विषय में बना रहे।

कोई ऐसी बात न कहनी चाहिये जिससे सुनने वाले का जी दुखी हो। जहाँ तक हो सके बातचीत में कटाव, व्यंग, आक्षेप, उपालम्भ और अश्लीलता से बचना चाहिये। अधिकार की अहंमन्यता में भी किसी को कटु शब्द कहना असभ्यता का परिचय देना है। कुछ लोगों को बातचीत के बीच बीच में, ‘जो है सौ’ ‘क्या नाम है’ आदि ‘तकिया कलाम’ कहने का अभ्यास पड़ जाता है। इन आदतों को सुधारना चाहिये, किन्तु दूसरों को उनके इन दोषों पर हँसना भी उचित नहीं है। बात चीत में सौगन्ध खाना बहुत बुरा है। बात बात में ‘गंगा की कसम’ या ‘ईमान से’ आदि शब्द कहना अभद्रता और ओछेपन का चिह्न है इसलिये सभ्य मनुष्यों को इन आदतों से बचना चाहिये।

बिना किसी अनिवार्य आवश्यकता के किसी की जाति, वेतन, अवस्था, वंशावली आदि पूछना उचित नहीं है। पूछते समय प्रश्नों की झड़ी नहीं लगानी चाहिए। यदि लगे कि कोई व्यक्ति जानबूझ कर आपके प्रश्न का उत्तर नहीं दे रहा है या नहीं देना चाहता तो उस प्रश्न के लिए उसके पीछे नहीं पड़ना चाहिए। नये व्यक्ति का परिचय प्राप्त करने में उत्सुकता और जल्दबाजी से काम नहीं लेना चाहिये।

बात चीत रोचक और विनोदपूर्ण ढंग से चलनी चाहिये। परन्तु हर वक्त हँसी ठटठ् करना हानिकारक है। कहने की शैली से आत्म प्रशंसा या श्रोता के लिये अपमान की झलक नहीं आनी चाहिए। भाषण में उपमा और रूपक का प्रयोग सावधानी से किया जाये। क्योंकि इसमें असावधानी बरतने पर अर्थ का अनर्थ हो जाता है। कहावतों और महापुरुषों के सुन्दर वाक्यों के प्रयोग से बातचीत में सरलता और प्रमाणिकता आ जाती है किन्तु इन्हीं का आधिक्य के साथ प्रयोग, बातचीत को बोझिल और नीरस बना देता है, इस बात का ध्यान रखना चाहिए।

यदि लोग आपको चुपचाप देखकर आपसे कुछ कहने की आग्रह करें तो ऐसी दशा में आपको सुन्दर बात या मनोरंजक विषय छोड़कर अवश्य उनकी इच्छा पूर्ति करनी चाहिये किन्तु आवश्यकता के बिना बात -बात में टाँग अड़ाना बुरा है। यदि कहीं कुछ लोग आपस में बात चीत कर रहे हों तो वहाँ अचानक जाना और बीच में अपनी बात छोड़ देना बहुत ही बुरा है। उनकी बातें जाकर सुनना भी अशिष्टता है। किसी को अशुद्ध उच्चारण करते देखकर हँस देना असभ्यता है। दूसरे की बात समाप्त होने पर ही अपनी बात आरम्भ करनी चाहिये। यदि बोलने वाला लगातार बोलता ही जाये और आपको बोलने का अवसर ही न दे तो आवश्यकता पड़ने पर नम्रतापूर्वक बोलने वाले से अपने बोलने की अनुमति लेनी चाहिए।

जहाँ किसी की असम्भव बातों में हाँ से हाँ मिलाकर चापलूसी करना उचित नहीं है वहाँ न्याय संगत और सच्ची बात सुनकर दुराग्रह से उसका खंडन करना भी अनुचित है। किन्तु कुछ सीमा तक दूसरे के मत का सम्मान और उसकी प्रशंसा करना और उसी प्रकार अपने मत के समर्थन में दूसरे के मत का खंडन करना सभ्य समाज में क्षंतव्य है। बातचीत में क्रोध के आवेश को रोकना चाहिये। जहाँ बहस मुबाहिसे के दौरान में कटु और उग्र शब्दों को प्रयोग होने की आशंका होने लगे वहीं बातचीत बन्द कर देना बुद्धिमानी है। नीति के अनुसार व्यंग वचनों का उत्तर व्यंग में देना उचित है तथापि शिष्टाचार के नाते आपको कम से कम एक बार उन्हें शान्तिपूर्वक सहन करना चाहिये। किसी की अनुपस्थिति में उसकी निन्दा करना अशोभनीय है। यदि बातचीत में किसी ऐसे सज्जन का उल्लेख हो तो उनके नाम के आगे या पीछे आदर सूचक शब्दों का प्रयोग करना चाहिए। मतभेद का कारण उपस्थित होने पर किसी के मत का खंडन नम्रतापूर्वक, क्षमा प्रार्थना करके, ऐसी चतुराई से करना चाहिये कि विरुद्ध मत वाले को बुरा न लगे।

काल, पात्र और स्थान के अनुरूप परिस्थितियाँ देखकर बात करनी चाहिए। नवयुवकों से वेदान्त की चर्चा करना जिस प्रकार उचित नहीं उसी प्रकार वयो वृद्ध लोगों को शृंगार रस की विशेषतायें बतलाना अशिष्टता का प्रमाण है। सड़क पर खड़े होकर अथवा चलते हुए दूसरे घर की किसी स्त्री से बातें करना अशिष्टता है। रोगी व्यक्ति से अधिक समय तक बातचीत करना या उससे रोग की भयंकरता का उल्लेख करना हानिकारक है। जिस जगह कोई व्यक्ति किसी विचारात्मक कार्य में संलग्न हों वहाँ जोर से बातचीत करके उसकी विचार-शृंखला में बाधा डालना उचित नहीं है। बातचीत के दौरान में यदि कोई आपसे आपके अनुपस्थित मित्र या सम्बन्धी की अनुचित निन्दा करे तो उसे नम्रतापूर्वक समझा कर मनाकर देना चाहिए। यदि वह इस पर भी न माने तो किसी बहाने से उसके पास से चला आना चाहिये। ऐसा करने से उसे आपकी अप्रसन्नता और अपने कार्य के अनौचित्य का कुछ आभास अवश्य हो जायेगा। जो स्वयं दूसरों की अकारण निन्दा नहीं करता उसके पास औरों को भी ऐसी निन्दा करने का साहस नहीं होता। सभ्य तथा शिक्षित समाज में पर निन्दक को प्रायः अनादर की दृष्टि से देखा जाता है।


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