हँसी की बात नहीं है, यह जीवन का सत्य है। मनुष्य मूर्ख है यदि वह अपना नुकसान देखकर रोता है। नुकसान होने पर ही आत्मा को विचार करने और ईश्वर को पूजने का समय मिलता है, और सत्य का दर्शन भी प्रभु तभी कराता है।
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कष्टों को कम करना और उनके कारणों को दूर करने का प्रयत्न करना मनुष्य के करने योग्य कार्य हैं।
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