भगवान बुद्ध की वाणी।

April 1948

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(1) अपने को अपने आप उठा। अपनी आप परीक्षा कर। इस प्रकार हे भिक्षु! तू अपनी आप रक्षा करता हुआ और विचारशील होकर सुख लाभ करेगा।

(2) जटा, गोत्र या जाति से कोई ब्राह्मण नहीं होता। जिसमें सत्य और धर्म है वही ब्राह्मण है।

(3) मैं किसी को उसके कुल अथवा माता के कारण ब्राह्मण नहीं कहता चाहे उसका लोग सम्मान ही क्यों न करें। मैं तो उसको ब्राह्मण कहता हूँ जो अपरिग्रही और आप बन्धनों से रहित है।

(4) मैं उसको ब्राह्मण कहता हूँ जो क्रोधरहित, कर्तव्य परायण, शीलवन्त, इच्छारहित संयमी और मुक्ति के निकट है।

(5) मैं उसे ब्राह्मण कहता हूँ जो कर्कशता रहित, शिक्षा युक्त और सच्ची वाणी बोलता है जिससे किसी का दिल न दुखे।

(6) मैं उसको ब्राह्मण कहता हूँ जिसमें विषय वासना नहीं है, जिसने सचाई को जान लिया है। जिसके संशय छिन्न भिन्न हो गये हैं। जिसने अमृत पद के मार्ग को जान कर उसे ग्रहण कर लिया है।

(7) मैं उसको ब्राह्मण कहता हूँ जो नेता, प्रबल, वीर, महर्षि, विजित काम, पवित्र और बुद्ध है।

(8) अगर तुमको ऐसा निष्पक्ष साथी मिल जाये जो नेक और बुद्धिमान हो और किसी प्रकार की कठिनाई से न हारे तो तुम दत्त चित्त होकर उसके साथ चल दो।

(9) प्रमाद रहित हो अपने विचारों को सुरक्षित करो। कीचड़ में फंसे हुए हाथी के समान बुराइयों से ऊपर उठने का प्रयत्न करो।

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