गहरी साँस लिया कीजिए

April 1948

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(पं. रामनरायण शर्मा)

फेफड़ों के द्वारा शरीर के भीतर का मैल रात-दिन बाहर निकला करता है। परन्तु बहुत से लोग अपनी ही मूर्खता के कारण ही कुटेवों से फेफड़ों को कमजोर कर लेते हैं। शरीर का जो अवयव नित्य प्रति काम में आता रहता है वह बलवान् बना रहता है। विपरीत इसके जिस अवयव का नित्य नित्य उपयोग नहीं किया जाता वह दुर्बल पड़ जाता है। जो लोग सीधे हाथ का ही अधिकतर उपयोग किया करते हैं उनका बायाँ हाथ सीधे हाथ की अपेक्षा कमजोर पड़ जाता है। इसी प्रकार जो लोग फेफड़ों का बराबर उपयोग किया करते हैं उनके फेफड़े बलवान् बने रहते हैं। लेकिन जो लोग फेफड़ों का निरन्तर उपयोग नहीं करते उनके फेफड़े कमजोर पड़ जाते हैं। यदि तलाश किया जाये तो सौ में नब्बे मनुष्य ऐसे निकलेंगे जो फेफड़ों का ठीक ठाक उपयोग नहीं करते। कोई पूछे कि फेफड़ों का ठीक ठीक उपयोग होता किस तरह है? इस तरह होता है कि श्वास लेते समय जो वायु बाहर से भीतर जाती है उससे फेफड़े पूरे पूरे भरे जाएँ। हवा से जब फेफड़े पूरे पूरे भर जाते हैं, तब पहले पहल पेट और पेट के नीचे का भाग फूलता है। उसके बाद फिर छाती फूलती है। छोटे छोटे बालकों को साँस लेते और छोड़ते देखने से यह बात समझ में आ सकती है। क्योंकि छोटी उम्र के बालक प्रायः कुदरती तरीके से साँस लेते हैं। लेकिन बड़े होने पर उन्हें स्कूल में टेढ़े झुककर बैठने की आदत पड़ जाती है, और वे कमर कसकर धोती बाँधने लगते हैं। इससे उनका पेट वगैरह दबा रहता है और इस कारण फेफड़ों के नीचे का भाग भीतर गये हुए साँस से पूरा पूरा नहीं भर पाता। अतएव केवल छाती और फेफड़ों का ऊपरी भाग ही श्वास लेने और निकालने का काम करता है। फेफड़ों के नीचे का भाग काम में न आने के कारण दुर्बल पड़ जाता है। अतएव शरीर के आरोग्य के लिए जितनी हवा की जरूरत है उतनी हवा फेफड़ों में नहीं आती और परिणाम इसका फिर यह होता है कि शरीर के भीतर से फेफड़ों द्वारा जितना मैल बाहर निकलना चाहिए उतना नहीं निकलता। इसलिए फेफड़ों को पूरा पूरा हवा से भरने की और पूरा पूरा खाली करने की आदत प्रत्येक व्यक्ति को डालना बहुत जरूरी है। शास्त्रों में जो कहा गया है कि प्राणायाम करने वालों का आरोग्य बढ़ता है और उनके अनेक प्रकार के रोग मिट जाते हैं, इसका अभिप्राय यही है कि फेफड़ों में पूरी पूरी हवा भरने से और पूरी पूरी निकालने से उनके द्वारा शरीर के भीतर का बहुत सा मैल नित्य प्रति बाहर निकल जाता है। जिन लोगों को श्वास की बीमारी होती है। वे न तो पूरा पूरा श्वास ले सकते हैं और न निकाल ही सकते हैं, अतएव वे सदैव दुःख भोगते रहते हैं। जो व्यक्ति प्रत्येक श्वास के साथ फेफड़ों को पूरा पूरा भरते और खाली करते हैं, उनका खाया हुआ आहार बड़ी अच्छी तरह पचता है और उनके रोगी होने की संभावना बहुत कम रहती है। सुतराँ लम्बा और गहरा साँस लेना प्रत्येक व्यक्ति के लिए परमोपयोगी और लाभदायक है। इस विचार से लम्बा साँस सीखने की सबको आदत डालनी चाहिए। जो लोग खूब कसकर धोती या पायजामा पहनते हैं, उन्हें चाहिए कि कमर के ऊपर का वस्त्र और छाती के ऊपर का कपड़ा ढीला पहनने का अभ्यास डालें और बूढ़ों की तरह झुककर बैठने की आदत परम हानिकारक है। इसलिए उसे भी छोड़ देना चाहिए। जो लोग लम्बा श्वास प्रश्वास लेने की आदत डालना चाहते हों उन्हें नीचे लिखी रीति पर आरम्भ करना चाहिए।

प्रातः काल उठकर जो घर में सुभीता हो तो घर में और नहीं तो दूसरी किसी ऐसी जगह में जहाँ स्वच्छ हवा आती हो, चित लेट जाओ। तकिया रखने की जरूरत नहीं है। कमर के ऊपर का कपड़ा ढीला कर दो, और शरीर के सभी अंग प्रत्यंगों को ढीला छोड़ दो। हाथों को दोनों तरफ लंबा लंबा फैला दो। इसके उपरान्त प्रसन्न चित्त से नाक के दोनों छेदों की राह से धीरे धीरे भीतर को श्वास खींचे। पहले तो धीरे धीरे पेट को भीतर खींचे हुए श्वास से भरो। पेट भर जाने के बाद फिर भी श्वास खींचते रहो, और तब तक खींचो जब तक कि छाती भी हवा से पूरी पूरी न भर जाय। छाती का ऊपर का भाग पूरा पूरा भर जाने तक श्वास बार बार खींचते रहो। इस रीति से फेफड़ों में जितनी हवा भरी जा सके उतनी भरो। इसके उपरान्त फिर नाक के छेदों से धीरे धीरे फेफड़ों में भरी हुई वायु को पूरी पूरी बाहर निकालो। यह श्वास लेने और निकालने की क्रिया पाँच मिनट से लेकर दस मिनट तक करो। बहुत से दुर्बल फेफड़ों वाले व्यक्ति एक ही दो बार इस रीति से श्वास लेने और निकालने में हाँफ जायेंगे और व्याकुल होकर श्वास प्रश्वास लेना बंद कर देंगे। परन्तु इस क्रिया से हाँफते लगना ही परम लाभदायक है। अभ्यास हो जाने पर इस तरह श्वास प्रश्वास लेना फिर परम सुगम हो जायगा। आरम्भ में बहुत से लोगों के फेफड़े दो या तीन सेकेंड में ही हवा से पूरे पूरे भर जायेंगे, अर्थात् दो या तीन सेकेंड में जितनी हवा श्वास के साथ भीतर जा सकता है। उससे अधिक फेफड़ों में नहीं खींची गई हवा से फेफड़े भरने का समय बढ़ता जायगा। पहले अठवाड़े में श्वास खींचकर फेफड़ों को भरने में चार सेकेंड और खाली करने में भी चार सेकेंड का समय लगाना चाहिए। दूसरे अठवाड़े में छः सेकेंड और चौथे में दस, इसी तरह फेफड़ों को हवा से भरने और खाली करने का समय उत्तरोत्तर बढ़ाते जाना चाहिए। शनैः शनैः अभ्यास बढ़ जायगा तो आधे मिनट तक खींची गई हवा फेफड़ों में भर सकेगी, और इतना ही समय फेफड़ों को हवा से खाली करने में लगा करेगा। बहुत से बढ़े हुए अभ्यास वाले व्यक्तियों के फेफड़ों में दो मिनट तक जितनी वायु खिंच सके उतनी भरती है। इसलिए धीरे धीरे अभ्यास को बढ़ाना ही मुख्य है। रात्रि को सोते समय भी यही क्रिया की जाय और दिन में जब अवकाश मिल सके तभी इसे कर लेना लाभदायक होगा। जितनी हो सके उतनी अधिक वायु फेफड़ों में जाने से और फिर फेफड़ों के पूरा पूरा खाली होने से खून बहुत अधिक शुद्ध होता है, आरोग्य की वृद्धि होती है, बुद्धि विशुद्ध होती है, मन स्वस्थ और विचार शक्ति तीव्र होती है। इनके अतिरिक्त और भी बहुत से लाभ होते हैं।

कसरत करने से फेफड़ों में अधिक वायु भरने का कार्य होता है। दौड़ने, कूदने और अन्यान्य प्रकार की कसरतों से भी साँस आने जाने का काम खूब तेजी के साथ चलना है जिससे कि बहुत सी वायु फेफड़ों में भरती और बाहर निकलती है और शरीर का मैल बहुत कुछ बाहर निकल जाता है। इसलिए शुद्ध हवा में कसरत भी परम लाभदायक है।

ऊपर कही हुई रीति से श्वास लेने और निकालने की तथा कसरत के द्वारा फेफड़ों में वायु भरने से शरीर के अनेक रोग मिट जाते है और नये रोग उत्पन्न होने से रुक जाते हैं।


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