अपने विषय में चिन्ता न करें

April 1948

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(प्रो. रामचरण महेन्द्र एम.ए.)

चिन्ता एक महानाश करने वाली व्याधि है, जिससे मन की समस्त उत्तमोत्तम शक्तियाँ पंगु हो जाती हैं। एक बार की चिन्ता सारे दिन की संचित शक्ति को नष्ट कर डालती है। मनोवैज्ञानिकों के अनुसार अपने विषय में चिंतन करने से मनुष्य विकार ग्रस्त, रोगी दीन हीन रहता है। उसमें नए नए शक शुवे उठते हैं। वह कई ऐसी कमजोरियाँ अपने व्यक्तिगत में बढ़ा लेता है, जिसका अस्तित्व बिल्कुल नहीं होता। धीरे-धीरे ये कल्पित रोग न्यूनताएँ शरीर में विचार शक्ति के दुरुपयोग स्वरूप स्वतः प्रकट हो जाती हैं। व्यक्ति बीमार हो जाता है।

अपनी कमजोरी का एक भी विचार मन में नहीं जाना चाहिए, अन्यथा परिणाम बड़ा भयंकर होता है। चिन्ता संक्षय उत्पन्न करती है। अनेक बार बीमारियों के विज्ञापन देखते देखते कितने ही व्यक्तियों को यह भ्रम हो जाता है कि हम कमजोर हैं, नपुँसक हैं, उदर पीड़ित हैं या पीले पड़ते जा रहे हैं, हाजमा बिगड़ता जा रहा है, हम दुबले पतले होते जा रहे हैं। ये सब रोग भ्रमवश अंतर्मन में उमड़ उठते हैं और मनुष्य का क्षय करने लगते हैं।

चिन्ता द्वारा आंतरिक जगत् से कुछ ऐसे विष निकलते हैं, जिनसे हमारी बुद्धि क्षय होने लगती है, आनन्द मिट जाता है, उत्साह क्षीण हो जाता है और मस्तिष्क में गर्मी बढ़ जाती है। मस्तिष्क के श्वेत बालुका और ग्रे मैटर सूखकर कड़े हो जाते हैं, मस्तिष्क के राज्य में अस्त व्यस्तता फैल जाती है।

चिन्ता एक प्रकार की मानसिक आदत है। कुछ व्यक्ति अनहोनी बातों, बेसिर पैर की कल्पनाओं में रत रहते हैं। कहीं यह न हो जाय, वह हो जाय, नौकरी न छूट जाय, बालक न मर जाय, चीजें महंगी न हो जाएं? बच्चों की शादी कैसे होगी? कल घर में अमुक वस्तु नहीं है, क्या होगा? रात में कोई घर में न घुस आवे?-न जाने कितनी चिंताएँ हमारे सभ्य जीवन को अस्त व्यस्त कर रही हैं।

इस अस्वास्थ्यकर आदत को स्वभाव से दूर कीजिये। उन्मुक्त, मस्त रहना सीखिये। जब कल आयेगा, देखा जायगा। अभी से क्यों फिक्र करें। आज तो मानसिक स्वतन्त्रता का सुख लूट लें, कल अपनी फिक्र खुद करेगा। उत्तम पुरुष वही है, जो चिन्ता के स्थान पर सदैव शान्त और गंभीर रहता है। चिन्ता के मोहपाश में नहीं फँसता बल्कि उसके अंधेरे को साफ कर वास्तविक चीजों को पहचानता है। वह मानसिक समस्वरता प्राप्त कर रहा है।

हम ठीक तरह विश्राम करना नहीं जानते। इसी से विश्राम के क्षणों में भी चिन्ता आ दबाती है। बेफिक्री की नींद में जो स्वास्थ्य प्रदायिनी शक्ति है वह उस बच्चे को देखकर मालूम हो सकती है जो बिना किसी चिन्ता के खुर्राटे भरी नींद का मजा लूटता है।

चिन्ता हमारी छाया है। क्या हम अपनी परछांई से डर जायं? क्या हम इस परछांई को असली चीज समझ कर डर उठें?

चिन्ता पर विजय प्राप्त करने का सर्वोत्तम मार्ग यह है कि हम अन्य उत्तम कार्यों में अपना मन लगायें, अपने को छोड़कर और बातों पर मनन करें।


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