गुण-ग्राहक दृष्टि को जागृत कीजिए

April 1948

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जिसके दोष देखने को हम बैठते है उसके दोष ही दोष दिखाई पड़ते है। ऐसा मालूम पड़ता है कि इस प्राणी या पदार्थ में दोष ही दोष भरे हुए हैं, बुराइयां ही बुराइयां उसमें संचित हैं। पर जब गुण ग्राहक दृष्टि से निरीक्षण करने लगते हैं तो हर प्राणी में, हर पदार्थ में कितनी ही अच्छाइयाँ, उत्तमताएं, विशेषताएं दीख पड़ती हैं।

वस्तुतः संसार का हर प्राणी एवं पदार्थ तीन गुणों से बना हुआ है। उसमें जहाँ कई बुराई होती हैं वहाँ कई अच्छाइयाँ भी होती हैं। अब यह हमारे हाथ में है कि उसके उत्तम तत्वों से लाभ उठावें या दोषों को स्पर्श कर दुखी बनें। हमारे शरीर में कुछ अंग बड़े मनोहर होते हैं पर कुछ ऐसे कुरूप और दुर्गन्धित हैं कि उन्हें ढके रहना ही उचित समझा जाता है।

इस गुणदोषमय संसार में से हम उपयोगी तत्वों को ढूंढ़ें, उन्हें प्राप्त करें और उन्हीं के साथ विचरण करे तो हमारा जीवन सुख मय हो सकता है। बुराइयों से शिक्षा ग्रहण करें, सावधान हों, बचें और उनका निवारण करने का प्रयत्न करके अपनी चतुरता का परिचय दें तो बुराइयाँ भी हमारे लिए मंगलमय हो सकती हैं। चतुर वैद्य वह है जो विषों को शोधन और मारण करके अमृतोपम औषधि बना लेता है, चतुर मनुष्य वह है जो बुराइयों से भी लाभ प्राप्त कर लेता है गुण ग्राहक दृष्टि को जागृत करके हम हर स्थिति से लाभ उठा सकते हैं।

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