अगला अंक ‘गायत्री’ अंक होगा।

April 1948

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ऐसा बहुमूल्य ज्ञान भाग्यवानों को ही प्राप्त होता है।

आप अपने मित्रों से कहिए कि वे आज ही अखंड ज्योति के ग्राहक बनें और

इस अमूल्य रत्न भण्डार से वंचित न रहें।

अखण्ड ज्योति का अगला अंक गायत्री अंक होगा। उसमें वेद माता गायत्री के ऐसे रहस्यों का प्रकटीकरण किया जाएगा जो अब तक बहुत कम लोगों को विदित है। पृष्ठ संख्या साधारण अंक से ड्योढ़ी रहेगी पर इतने ही पृष्ठों में जो अमूल्य ज्ञान रहेगा उसकी तुलना ऊँट पर लदने लायक पोथों से भी नहीं की जा सकती।

‘वेद-हिन्दू’ संस्कृत के उद्गम स्रोत हैं, इन वेदों का उद्भव वेद माता गायत्री से हुआ है। इस महामंत्र में सूक्ष्म रूप से यह सब भरा हुआ है जो हमारे विविध धर्मशास्त्रों में सविस्तार कहा गया है। गायत्री के बारे में अधिक से अधिक जानना हर विचारशील व्यक्ति का कर्तव्य है। इस, उपयोगिता को ध्यान में रखते हुए यह अंक पाठकों के समक्ष उपस्थित किया जा रहा है।

पाठ्य सामग्री बहुत अधिक होने से उसे अप्रैल और मई दो अंकों में पूरा किया जायगा, लेख एक से एक उत्तम, अमूल्य और अत्यन्त खोज पूर्ण हैं। उनमें से कुछ लेखों की सूची नीचे दी जाती है। इनके अतिरिक्त और भी अनेकों लेख होंगे।

(1) गायत्री की उत्पत्ति कैसे हुई?

(2) वेदमाता गायत्री का तत्व ज्ञान।

(3) सतोगुणी ब्राह्मी शक्ति की वास्तविकता।

(4) आत्मबल और परमात्मा की प्राप्ति।

(5) गायत्री का महान् महात्म्य।

(6) दीक्षा और गुरुमंत्र का आधार गायत्री।

(7) गायत्री द्विजों का नित्य नियम।

(8) इस साधना की पाँच शर्तें।

(9) गायत्री शिक्षा से भूतल पर स्वर्गीय सुख।

(10) घोर विपत्तियों से छुटकारा।

(11) नौ अद्भुत सिद्धियों की प्राप्ति।

(12) गायत्री और यज्ञोपवीत का प्रगाढ़ संबंध।

(13) सूक्ष्म ग्रन्थियों का विकास।

(14) षट्चक्रों और कुँडलिनी का जागरण।

(15) गायत्री की त्रिविधि साधना।

(16) अलौकिक शक्तियों का आभास।

(17) सर्व पापनाशक प्रायश्चित का विधान।

(18) साधना की आवश्यक जानकारियाँ।

(21) गायत्री साधक को होने वाले अद्भुत अनुभव

(22) चौबीस शक्तियों का उद्भव।

(23) सब अशकुनों का परिहार।

(24) गायत्री द्वारा भौतिक और आत्मिक उन्नतियाँ।

(25) विघ्न विदारक सवालक्ष जप का अनुष्ठान

(26) महा अनुष्ठान से मंत्र सिद्धि।

(27) ध्यान की धारणा से समाधि।

(28) गायत्री साधना से समस्त मंत्रों का लाभ।

(29) मानवधर्म शास्त्र का निचोड़-गायत्री।

(30) एक एक शब्द में ज्ञान समुद्र का समावेश

जिन्हें यह अमूल्य सामग्री प्राप्त करनी हो वे शीघ्र से शीघ्र ग्राहक बन जायें। अंक उतना छपेगा जितने ग्राहक हैं। देर करने वालों को अमूल्य अंक से वंचित रहना पड़ेगा।

मैनेजर ‘अखण्ड ज्योति’, मथुरा

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