अपने शरीर को अन्तरीप समझो जिसमें समुद्र की लहरें दिन रात टकराया करती हैं, लेकिन तब भी वह अपने स्थान को नहीं छोड़ता। इसी प्रकार जितनी आपत्तियाँ तुम पर आवें सभी को वीरता के साथ सहन करो और उनसे विचलित न हो।
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