प्रार्थना

March 1941

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

(पं. लक्ष्मीनारायण जी ‘लक्ष्मनि’ मैनपुरी)

(1)

प्रभु की इस रमणीय वाटिका, में बसन्त ऋतु आवे ।

पुण्य पूत वसुधा हो सारी, जो आवे, सुख पावे ॥

इस अरुणोदय की बेला में, नयन न को कोई मीचे

शिव, शिव करता सुप्त युगों का, यह मानव जग जावे ॥

(2)

अधः पतन के पथ पर कोई, व्यक्ति न कदम बढ़ावे।

पाप-पंक में भ्रम वश कोई, अपना पग न फँसावे॥

एक दुखी दूसरा सुखी यह, दुखद दुर्दशा छूटे।

रोता आने वाला जब जावे, तब हँसता जावे॥

(3)

भूले भटके पथ पर आवे, कर्म रेख पहिचानें।

टुकड़ों पर ललचाने वाले, सब जग अपना मानें॥

हे परमेश्वर ! जो नर नाहर भ्रम से भेड़ बने हैं।

वे अपने स्वरूप को समझें, अपने को पहचानें॥


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles