दुःख से सुख की उत्पत्ति

March 1941

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(ले.—भारतेन्दु वेदालंकार गुरु कुल, सूपा)

प्रायः देखा जाता है कि मनुष्य दुःख अथवा अन्य किसी प्रकार की आपत्ति आने पर घबरा जाता है। उस समय उसका मन बहुत ही डाँवाडोल स्थिति में होता है, विवेक शक्ति नष्ट सी हो जाती है और उसे समझ नहीं आता कि मैं क्या करूं। यह तो मनुष्य का स्वभाव है, एक मनोवैज्ञानिक सच्चाई है। इस सच्चाई के होते हुए भी हमें देखना है कि इस दुःख और आपत्ति से हमारी नैतिक उन्नति हो सकती है। यह हमारे लिए एक बहुत श्रेष्ठ एवं स्थायी सुख को जन्म देने वाला है, यदि हम यह सोचें कि यह दुःख हमें क्यों आया-इसका कारण क्या है? हम साधारण मानव इसके असली कारण को शायद न जान सकें, परन्तु इतना तो मालूम ही होता है कि हरेक अच्छे या बुरे कम का फल जरूर मिलता है। अच्छे का अच्छा फल-सुख तथा बुरे का बुरा फल-दुःख। कर्म फल का यह अटूट सिद्धान्त है। इस सिद्धान्त को ध्यान में रख कर हम आये हुये दुःख या आपत्ति का कारण हमारे बुरे काम हैं, यह बात समझ जाएंगे। उदाहरणार्थ एक व्यक्ति को दस रुपये चुराये जाने पर या अमुक प्रिय वस्तु के गुम हो जाने पर दुःख होता है-वह रोता है और गई वस्तु पर बार-बार अफसोस करता है। परन्तु यदि वह उस समय यह समझ ले कि ये रुपये या वस्तु मैंने अधर्म से ली थी, इसी लिए मैं इसका उपभोग नहीं कर सका, जरूर ही किसी समय यह पाप किया होगा, क्योंकि उसका कारण होना ही चाहिये। इसी प्रकार संसार में हरेक दुःख और आपत्ति के समय धैर्यपूर्वक इसको सोचें, तो हमें ये दुःख, दुःख मालूम नहीं होंगे, परन्तु इसके विपरीत हमारा नैतिक जीवन बहुत ही उन्नत हो जायगा। हम असली सुख को पायेंगे। इस सुख की ओर बढ़ने के लिए हमें एक सूत्र याद रखना चाहिये और वह यह कि, ‘ईश्वर जो कुछ भी करता है, वह अच्छा ही करता है’। अर्थात् जो भी सुख या दुःख आता है, वह परमात्मा के न्यायानुसार होता है। अतः हमें उसको सहन करना चाहिये। ऐसा समझ लेने पर हम कभी भी किसी का रुपया, धन या अच्छी लगने वाली वस्तु को हड़पने या अधर्म से लेने को नहीं ललचाएंगे। हमारी प्रवृत्ति अधर्म (पाप) से हट कर धर्म (पुण्य) की और हो जायगी ओर इस प्रकार निश्चय ही हम सच्चे सुख और ऐश्वर्य के भागी बनेंगे। इसीलिये कहते हैं कि सुख या दुःख मन की कल्पना से बनाई हुई है, वास्तव में कोई वस्तु नहीं हैं। इसको हम ठीक-2 तभी समझ सकते हैं, जब इस सूत्र पर पूर्ण विश्वास और श्रद्धा हो—’ईश्वर जो कुछ करता है, वह अच्छा ही करता है’। यह है सुख की असली कुंजी।


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