स्वप्न सिद्धि का अनुभव

March 1941

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(श्री श्रीकान्त शास्त्री, नारायणपुर)

स्व प्रसिद्धि का साधन अन्य ताँत्रिक साधनों की तरह न तो संपदा है और न सर्व दुर्लभ। इस का प्रमाण हमारे जैसे निरुद्योगी जीव की इसमें अभूतपूर्व सफलता है। इसके साधन के लिए न तो कंदराओं में जाने की आवश्यकता है और न श्मशान में। सोने के समय अपनी शय्या पर पवित्रतम विचार धारण कर बायें हाथ में लाल कनेर का फूल और दाहिने में रुद्राक्ष की माला ले बैठ जाइये और निम्न मंत्र 400 सौ की संख्या में जपिए। बाद में सो जाइये। इसी तरह सात दिन तक पवित्र वातावरण में रहकर साधना करते रहिए। आठवें दिन सातों फूलों को घी में भिगो कर उसी मंत्र से हवन दे दीजिये। मंत्र सिद्ध हो जावेगा। बाद जिस प्रश्न का उत्तर जानना हो, रात में उसकी धारण कर सो जाइये। प्रातः काल उठकर विचार कीजिये, स्वप्न में उसका क्या उत्तर आया? ठीक वही उत्तर होगा। सर्व प्रथम आठवें दिन हमने पूछा—’हम मंत्र सिद्ध कर पाये या नहीं? स्वप्न में देखा कि—हम और हमारे एक मित्र दोनों एक अज्ञात तीर्थ में हैं। सामने दिव्यांगनाओं की एक टोली है। टोली की अध्यक्षा हमें देखकर मुस्करा रही है। बाद में वह आई और प्रणाम कर प्रेम-दृष्टि से देखकर चली गई। हम दोनों विस्मित थे। बाद आवाज आई-हम वही थीं, जिसके पीछे आठ दिन से लगे थे! नींद टूटी। इसी प्रकार बहुत सी परीक्षायें लीं और सच्चा उत्तर पाया। मन्त्र यों है—ओद्दम् मणिनद चित्रकाय सर्वार्थ सिद्धि कार्यामम स्वप्न दर्शनाय कुरु कुरु स्वाहा’ । इसका जप जापक को भविष्य वक्ता बना सकता है। किन्हीं स्मृतिहीन साधकों को स्वप्न याद नहीं रहते, अतः इस पर अविश्वास करते हैं। पर यह कोई कारण नहीं। अतः प्रातः काल उठकर पुनः कुछ जप करेंगे तो स्वप्न याद आ जायगा। यदि कोई सज्जन इसके विषय में पूछताछ करना चाहें तो मुझ से नारायणपुर पो. एकंगरसराय पटना के पते से जवाबी टिकट देकर पूछ सकते हैं।


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