‘भक्त और साधु बनना चाहिये, कहलाना नहीं चाहिये। जो कहलाने के लिये भक्त बनना चाहते हैं, वे पापों से ठगे जाते हैं, ऐसे लोगों पर सब से पहला आक्रमण दम्भ का होता है।’
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“भक्ति अपने सुख के लिये हुआ करती है, दुनिया को दिखलाने के लिये नहीं, जहाँ दिखलाने का भाव है वहीं कृत्रिमता है।”