अपने को पहचानो!

March 1941

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अपनी कठिनाइयाँ हमें पर्वत के समान दुर्भेद्य, सिंह के समान भयंकर और अंधकार के समान डरावनी प्रतीत होती हैं, परन्तु यह सब यथार्थ में कुछ नहीं, केवल भ्रम की भावना मात्र हैं, इनसे डरने का कोई कारण नहीं। इस बात का शोक मत करो कि मुझे बार-बार असफल होना पड़ता है। परवाह मत करो,क्योंकि समय अनन्त है। बार-बार प्रयत्न करो और आगे की ओर कदम बढ़ाओ। निरन्तर कर्त्तव्य करते रहो, तुम्हारा एक-एक पग सफलता की ओर बढ़ रहा है, आज नहीं तो कल तुम सफल होकर रहोगे क्योंकि कर्त्तव्य का निश्चित परिणाम सफलता है।

सहायता के लिये दूसरों के सामने मत गिड़गिड़ाओ क्योंकि यथार्थ में किसी में भी इतनी शक्ति नहीं है जो तुम्हारी सहायता कर सके। किसी कष्ट के लिये दूसरों पर दोषारोपण मत करो, क्योंकि यथार्थ में कोई भी दूसरा तुम्हें दुख नहीं पहुँचा सकता। तुम स्वयं ही अपने मित्र हो और तुम स्वयं ही अपने शत्रु हो, जो कुछ भली बुरी स्थितियाँ सामने हैं वह तुम्हारी पैदा की हुई हैं। अपना दृष्टिकोण बदल दोगे तो दूसरे ही क्षण यह भय के भूत अन्तरिक्ष में तिरोहित हो जाएंगे।

मित्रो! किसी से मत डरो। क्योंकि तुम तुच्छ जीव नहीं हो। अपनी ओर देखो, अपनी आत्मा की ओर देखो। मिमियाना छोड़ो और दहाड़ते हुए कहो ‘सोऽहम्’ ‘मैं वह हूँ’ जिसकी सत्ता से वह सब कुछ हो रहा है।


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