जीवन संगीत

March 1941

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(श्री रामसेवक गुप्त सेवकेन्द्र, दतिया)

जीवन में कहीं सौभाग्य प्रभात काल होता है। सुख का सूर्य उदय होता है और ज्ञान की वायु बहती है। सुन्दर उषा के दर्शन होते हैं। दूसरी ओर कड़ी दुपहरी होती है, सूर्य उग्र रूप धारण कर लेता है और वायु लू बनकर अनेकों को चाटती है।

लोभ, मद, मोह, स्वार्थ और माया ये जीवन के आज्ञाकारी सैनिक तथा सेवक हैं, किन्तु इनसे डर जाते हैं और अर्थ का अनर्थ कर देते हैं। मनुष्य कि कर्त्तव्य विमूढ़ होकर अपना सीधा मार्ग खो देते हैं और अशाँति के भँवर में गोते लगाते हैं।

जीवन एक ऐसी कठिन यात्रा है, जिसमें गम्भीर बातें और विपत्ति के दृश्य हैं। यह गाने बजाने के लिए एक प्रहसन नहीं है। इसमें थोड़ी दूर आगे चलकर कभी उजाड़ मैदान और दलदल मिलेगा, कभी रथ और विमानों की सुविधाजनक यात्रा।

विषम परिस्थितियाँ जीवन का सौंदर्य है। क्योंकि विभिन्नता ही सौंदर्य का मूल तत्व है। स्वर की विभिन्नता का नाम ही संगीत है। हमारे जीवन में विविधताएं रहती हैं, इसीलिये वह सुन्दर और संगीतमय प्रतीत होता है। वास्तव में सुख और दुःख, रोग और स्वास्थ्य, अमीरी और गरीबी, क्षुधा और तृप्ति, तिताई और मिठाई इसलिये पैदा की हैं कि मनुष्य इनमें से एक दूसरे के भेद को जान सके, सौंदर्य की परख कर सके, संगीत का आनन्द ले सके।

किन्तु जो इन्हीं में लिप्त हो जाता है, दुख में होता है और सुख में आता है, वह बालक की तरह अज्ञान है, जो खिलौने पर ही सारी मुहब्बत उड़ेल देता है। हमें चाहिए कि इन विभिन्नताओं में वैसा ही आनन्द लें जैसा खटाई और मिठाई में लेते हैं, पंचम और खरज दोनों ही स्वरों को सुनने के लिए तैयार रहें, तो हमारा जीवन, संगीत की तरह मधुर हो सकता है।


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