माता की ममता

March 1941

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माता की ममता

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(पं. श्रीराम बाजपेयी)

मैं अपने माँ-बाप का इकलौता लड़का हूँ। पिता मुझे छोटी सी अवस्था में असहाय छोड़ कर गुजर गये थे।

बात तब की है, जब मैं छोटा था, मगर नेको बद की कुछ कुछ तमीज आ चली थी।

माता के साथ छत पर बैठा धूप खा रहा था। सामने बन्दरों की एक सेना निकली। नर बन्दरों में कई बड़े-बड़े भिल्ल देखने में आये। बहुत सी बंदरिया अपने छोटे-छोटे बच्चों को लिए जाती दिखाई दीं। किसी का बच्चा पीठ पर सवार था, तो कोई अपने बच्चे को पेट से चिपटाये थी। बच्चे देखने में बड़े सुहावने थे। उनके लाल लाल मुँह और सर पर कढ़ी हुई माँग अँगरेजों के बच्चों को भी मात करती थी। माताओं को बच्चे प्यारे थे और बच्चे भी अपनी-अपनी माताओं के सिवा किसी दूसरे का कुछ नहीं गिनते थे।

इतने ही में सबसे पीछे एक बंदरिया आई। उसके रंग-ढंग से मालूम होता था कि वह बड़ी डरती थी। थोड़ा-थोड़ा चलकर रुक जाती और चारों तरफ दर्द भरी निगाह से देखती। चलती भी थी, तीन टाँगों से लँगड़ा-लँगड़ा कर क्योंकि उसका एक हाथ घिरा हुआ था। घिरे हुए हाथ में कोई सूखी सी चीज़ लिए थी, जिस पर हज़ारों मक्खियाँ भिनक रही थीं। पूछने पर मेरी माँ ने बताया कि वह उसका मरा बच्चा था और जब तक वह सड़-सड़कर गिर न जाएगा बंदरिया उसे छोड़ेगी नहीं।

मैंने पूछा “क्यों” ? मेरी माता के आँसू छलक आये और उन्होंने मेरे सर पर हाथ फेरते हुए कहा- “माता की ममता”। मैंने और प्रश्न नहीं किया।

(2)

मुहल्ले में नज़दीक ही हुल्ला बाबा का मकान था। हुल्ला बाबा अहीर थे और मुहल्ले भर में उन्हीं के यहाँ से दूध जाता था। छोटे बच्चे उन्हें बाबा कहकर पुकारते थे और वह भी हम लोगों से सहृदयता का सलूक करते थे।

गरीब होते हुए भी मेरी माँ मुझे पाव भर दूध रोज पिलाती थी। कभी-कभी हुल्ला बाबा के यहाँ से आकर कोई न कोई दूध दे जाता और कभी कभी मैं और मेरी माँ खुद जाकर दूध ले आते।

एक दिन सुबह को मैं और मेरी माँ दूध लेने गये। दरवाजे पर पहुँचते ही अन्दर कुछ गुलगपाड़ा सुनाई दिया। अन्दर जाकर देखा तो कुछ लोग एक गाय पर गाली और डंडों की वर्षा कर रहे हैं, पर गाय बाज़ नहीं आती; वह फुँकारती और टाँगों को फटकार कर सभी के मिज़ाज को हरा कर रही थी। यह नज़ारा थोड़ी देर तक जारी रहा। अन्त में हुल्ला बाबा की घर वाली आई। उन्हें हम दादी कहा करते थे। उन्होंने उस मरकही गाय के सामने एक बछड़ा लाकर रख दिया। इसे देखते ही गाय एक दम शान्त हो गई और उसे चाटने लगी। इधर हुल्ला बाबा भी गाय के नज़दीक बैठ कर गर-गर दूध दुहने लगे।

बछड़े को हिलता-डुलता न देखकर मैंने माँ से पूछा “ यह कैसा बछड़ा है जो टस मस नहीं करता? माँ ने उत्तर दिया “यह मरा बच्चा है, इसमें भूसा भर दिया गया है। इसीलिए इसमें कोई साँस डकार नहीं हैं।” मैंने फिर पूछा “क्या गाय नहीं समझती कि बच्चा बेजान है?” माँ के फिर आँसू छलक आये और बोली “माता की ममता” —तरुण


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