इच्छा और सफलता

March 1941

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(धर्माचार्य सच्चिदानन्द शास्त्री, बदायूँ)

इच्छा शक्ति एक प्रचण्ड बल है। मनुष्य जीवन का ही बिजली-घर है। इस शक्ति का जो जैसा उपयोग करता है वह वैसा ही बन जाता है। आग में जलाने की ताकत मौजूद है। कोई इस ताकत को भली ओर लगाता है, कोई बुरी ओर। वैज्ञानिक और शिल्पी लोग इसकी सहायता से भाप बना कर कल कारखाने चलाते और तरह-तरह की चीजें तैयार करते हैं। पण्डित हवन करके इसके द्वारा वायु शुद्ध करते हैं और चोर, डाकू, लुटेरे आग लगाकर गाँव के गाँव तबाह कर देते हैं-सैंकड़ों को अनाथ बना देते हैं। शक्ति का क्या परिणाम होगा, यह प्रयोग करने वालों की इच्छा पर निर्भर है।

ईश्वर को प्राप्त करने की इच्छा से कितने ही अज्ञात पुरुष पर्वतों की गुफाओं में बैठे हुए तप कर रहे हैं। मनुष्य यदि अपने उद्देश्य की सिद्धि के लिये दृढ़ संकल्प कर ले तो शरीर का दुख-कष्ट कोई बाधा खड़ी नहीं कर सकता। पहाड़ से निकला हुआ पानी का झरना जैसे सामने की शिलाओं और पत्थरों को तोड़ता फोड़ता अपना रास्ता बना लेता है वैसे ही दृढ़ इच्छा शक्ति भी विघ्नों को हटाकर सफलता तक पहुँचा देती है।

मनुष्य यदि किसी विषय पर विचार करके ‘करूंगा” स्थिर कर ले तो उसे करने में वह अपने शरीर तक को होम सकता है, ऐसी दशा में कोई कारण नहीं कि सफलता न मिले। सर्व शक्तिमान् मंगलमय परमात्मा ने मनुष्य के भीतर यह महाशक्ति रखी है। हम इस महाशक्ति के माहात्म्य को नहीं समझते। बहुतों को तो इसके अस्तित्व का भी ज्ञान नहीं। पर यह निश्चित है कि इस शक्ति की सहायता बिना कोई सफलता के प्रति नहीं कर सकता।


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