प्रसन्न रहने वाले व्यक्ति को देखकर दुःखी लोगों के चेहरे पर भी मुसकराहट आ जाती है, किन्तु निराश और उदासीन को देखकर प्रसन्न लोगों को भी दुख होता है। निराश रहने का कारण है आत्म विश्वास का अभाव। कायरता आत्मनिर्बलता मनुष्य की जन्म-जात शत्रु है। आत्म विश्वास का अभाव एक ऐसी ऐनक है, जिसे पहन लेने पर सब चीजें भय और दुख के रंग में रंगी हुई दिखाई पड़ती हैं। उदास स्वभाव के मनुष्य को यदि एक तिनके की बराबर हानि हो जाए तो वह समझता है कि मेरा सर्वस्व चला गया। मेरी सारी संपदा नष्ट हो गई। जब जरा जरा सी बातों में इतना उद्वेग होता है, तो किसी महत्वपूर्ण विषय पर गंभीरता के साथ विचार करने के लिए उसके मस्तिष्क में स्थान नहीं बच पाता।
आत्म विश्वास का अभाव, अन्य प्रकार के अभावों, अपने भाई-बन्धुओं को बुलाता है, जैसे कोई खाने की वस्तु मिलने पर कौआ काँव-काँव करके अन्य कौओं को बुला लेता है। कायरता हमारे हाथों को बाँध देती है और सद्गुणों पर आलस्य का पर्दा डाल देती है और जीवन के वास्तविक आनन्द का गला घोंट कर हत्या कर देती है। एक महापुरुष का कथन है कि आँधी के झोंके से टूट कर गिरे हुये वृक्ष में फिर उठने की शक्ति नहीं रहती, उसी प्रकार निराशा के भार से दबा हुआ मनुष्य अपाहिज बन जाता है। जैसे पहाड़ से नीचे बहने वाला पानी बरफ को भी अपने साथ बहा लेता है, वैसे ही आँसू जब बहते हैं तो चेहरे की सुन्दरता को भी बहा ले जाते हैं। तेजाब में पड़ा हुआ मोती पहले मैला होता है, फिर गल जाता है, उसी तरह निराशा पहले मनुष्य को निर्बल बनाती है, फिर उसे खा जाती है।
आत्मा को दुर्बल बनाने वाला, उत्साह को नष्ट करने वाला, सफलता के आसन पर विफलता को बिठाने वाला केवल एक ही शत्रु है और वह है आत्म विश्वास का अभाव। इस शत्रु से सावधान रहो। जब जरा भी उदासीनता या निराशा के भाव मन में उत्पन्न होने लगें, तो तुरन्त सावधान हो जाओ। अपने आत्मा को समझो। जैसे ही तुम अपनी महान् शक्ति को पहचानते हो; वैसे ही कमजोरी के विचार स्वयंमेव चले जाते हैं। उस उदासीन मनुष्य को देखो, जड़ कटे हुए पौधे की तरह शिर झुकाये और आँखें नीची किये हुए खड़ा है। क्या अपने लिए तुम ऐसी स्थिति ही पसन्द करोगे?