तुम उसे अवश्य पा लोगे

December 1996

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किसी पहाड़ी झील पर नजर डालों। तुषार की रुपहली चादर बिछी हुई है। हवा चलती है पाली बरसता है बादल गरजते हैं, बिजली चमकती है किन्तु झील की निश्चलता में कोई अन्तर नहीं आता। किनारों पर रंग-बिरंगे पक्षी कुँजते और किलोल करते हैं किन्तु उस झील में कोई विक्षेप उत्पन्न नहीं होता तट पर फैली वृक्षावली में एक से एक सुन्दर, सुगन्धित फूल खिलते शाखा में से टूटकर झील पर गिरते हैं किन्तु झील के स्थिर हृदय में उनका कोई प्रतिबिंब नहीं उठता वह अपने निर्विकल्प भाव में एक समान तन्मय रहती है। तुममें यदि उस झील की तरह स्थिरता तन्मयता और निर्विकलता का धैर्य है तो तुम उसे अवश्य पा लोगे।

वैद्य जंगल से तरह-तरह की घास-फूँस उखाड़ लाता है । उन्हें पानी से साफ करता है भली-प्रकार कूटता पीसता, मसलता है इन्हें आग में खौलाता है उबालता है इन घास-पत्तियों को दहकते अंगारों, धधकती लपटों में जलना, भूनना, रा, होना पता लेकिन ये घास-पत्तियों सारी यन्त्रणाएँ समर्पित भाव से सहन करती हैं उफ की ध्वनि, आहें की सिसकी, विरोध की प्रतिक्रिया उनमें कभी नहीं होती । यदि तुममें अपने गुरु के प्रति इन घास-पत्तियों की तरह का समर्पण भाव है तो तुम उसे अवश्य पा लोगे।

कुम्हार तालाब से मिट्टी खोद लाता है उसे कूट पीस कर महीन बनाता और छानकर साफ करके पानी डालकर उसे खूब रौंदता पीटता है। तैयार हो जानें पर चाक पर चढ़ाकर अपनी इच्छा के अनुसार वह उसे आदमी पशु या पक्षी का रूप देता है किन्तु इतना सब होने पर भी मृतिका कुछ नहीं बोलती । सब कुछ समभाव से सहन करती हुई कुम्भकार की इच्छा-वशवर्ती रहती है यदि तुममें उस मृतिका की भांति सहनशीलता और नम्रता है तो तुम उसे अवश्य पा लोगे।

मरुस्थल में भटके प्राणी की वाँछा में पानी की लालसा के अतिरिक्त और कुछ नहीं होता। पानी के लिए उसकी व्याकुलता इतनी बढ़ जाती हैं कि उसे तपती रेत के कणों में पानी का आभास होने लगता है वह छटपटाता है, दौड़ता है विकलता है उसकी चाह होती हैं किसी पानी से लबालब भरे जलाशय की नहीं, सिर्फ एक बूँद जल की। वह बूँद में ही अपने सर्वस्व को खोजता है पनघट पर खड़े पथिक की प्यास में न तो इतनी व्याकुलता होती है और न एकांतिकता। वह पानी के अतिरिक्त वहां के दृश्य भी देखता और रस भी लेता है वहां पास में खड़े लोगों से गप-शप का आनन्द भी लूटने लगता है यदि तुम उसे पाना चाहते हो तो पनघट पर खड़े प्यार से पथिक की इच्छा नहीं भटके तृषित प्राणी की आकाँक्षा लेकर चलो , एक दिन तुम उसे अवश्य पा लोगे।


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